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चांद का इस्तकबाल, पवित्र माह रमजान की मुबारकबाद

रमजानुल मुबारक के चांद का दीदार होते ही लोग खुशी से उछल पड़े। शाम मगरिब की नमाज के बाद बादलों की ओट से कुछ पलों के लिए चांद ने अपना मुखड़ा दिखाया। काफी लोग तो चांद की एक झलक देखने को तरस गए। मुस्लिम बहुल इलाकों में आतिशबाजी से चांद का इस्तकबाल किया गया।

By Edited By: Published: Mon, 30 Jun 2014 03:14 PM (IST)Updated: Mon, 30 Jun 2014 03:19 PM (IST)
चांद का इस्तकबाल, पवित्र माह रमजान की मुबारकबाद

वाराणसी। रमजानुल मुबारक के चांद का दीदार होते ही लोग खुशी से उछल पड़े। शाम मगरिब की नमाज के बाद बादलों की ओट से कुछ पलों के लिए चांद ने अपना मुखड़ा दिखाया। काफी लोग तो चांद की एक झलक देखने को तरस गए।

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मुस्लिम बहुल इलाकों में आतिशबाजी से चांद का इस्तकबाल किया गया। शाम होते ही घरों की छतों, मैदानों में लोग जमा हो गए। सभी लोग आसमान की ओर टकटकी लगाए थे। छतों से महिलाएं व बच्चे एक दूसरे को अंगुली के इशारे से चांद देखने की पुष्टि कर रहे थे। लोगों ने शाम से ही रमजानुल मुबारक माह की मुबारकबाद देनी शुरू कर दी थी।

काफी लोग अपने करीबियों को संदेश भी भेज रहे थे। मोबाइल पर दुआएं भी आदान-प्रदान की जा रही थीं। इबादतों के इस माह के शुरु होने पर सभी लोग खुशी का इजहार कर रहे थे। काजी-ए-शहर मौलाना गुलाम यासीन ने रमजानुल मुबारक की मुबारक देते हुए लोगों से कहा कि वे ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में गुजारें।

रमजानुल मुबारक का पवित्र माह आज रविवार को चांद रात से ही प्रारंभ हो गया। रमजानुल मुबारक को सब्र करने का भी महीना कहते हैं और सब्र का बदला जन्नत है। कोई दूसरा शख्स अगर रोजेदारों को बुराभला कहता है तो उससे कह दिया जाता है कि भाई हम रोजे से हैं। इस माह में नफ्ल का सवाब फर्ज के बराबर मिलता है और प्रत्येक फर्ज का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है। अल्लाह तआला रोजेदारों के पिछले सारे गुनाह माफ कर देता है। जो लोग किसी रोजेदार को इफ्तार करवा देते हैं तो इस कारण उस व्यक्ति के तमाम गुनाह माफ हो जाते हैं।

अल्लाह तआला फरमाता है कि मोमिन की रोजी बढ़ा दी जाती है। रमजानुल मुबारक एक दूसरे के हमदर्दी का भी महीना है। सब्र करने का महीना है रमजानुल मुबारक रमजान त्याग का महीना है। अल्लाह ने अपने बंदों को बुराइयों को त्याग कर अच्छे मार्ग पर चलने का यह सुनहरा मौका प्रदान किया है। इंसान गलतियों का पुतला है और अक्सर वह गलतियां करता है। इसलिए इस मौके को हाथ से जाने न दें और ईमानदारी से अल्लाह की इबादत करें। बुराइयों को त्यागने वाला ही सही मायनों में अल्लाह की इबादत करने का सच्चा हकदार है। रोजा आत्मा की शुद्धता का सबसे उत्तम साधन है। रोजेदार के मन में किसी तरह का गलत ख्याल तक नहीं होना चाहिए। रोजे का मतलब भूखे पेट रहकर अल्लाह की इबादत करना नहीं है, बल्कि सही मायनों में जीवन से बुराइयों को मिटाकर अच्छाइयों को अपनाना है, जिससे समाज में शांति और अमन कायम रहे। रोजा इफ्तार में हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मो के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यह समाज में भाईचारा बढ़ाने का एक जरिया है। अल्लाह भी अपने बंदों से यही उम्मीद करता है कि सब मिल-जुलकर रहें। सही मायनों में रमजान प्रेम का महीना है। अच्छा मुसलमान वही है जो अच्छा काम करे। दूसरे के दुख को अपना दुख समझे। रोजेदार के लिए जरूरी है कि वह अपने पड़ोसी का भी ध्यान रखे। एक साल की कुल कमाई के लाभ का ढाई फीसदी हिस्सा गरीबों में बांटे। बुराई त्यागें व अच्छाई अपनाएं मौलाना मोहम्मद मदनी

(महासचिव, जमीयत-एउलेमा-ए-हिंद)


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