Ramayan Katha: राम सेना का वो वीर, जिसने रावण के सभी योद्धाओं को हराया
Ramayan Katha भगवान श्रीराम और रावण के युद्ध की कथा हम सहस्त्रों वर्ष से सुनते आए हैं। क्या आपको पता है कि भगवान राम की वानर सेना में हनुमान जी के अलावा भी एक ऐसा योद्धा था जिसने अकेले ही रावण के सभी योद्धाओं को पराजित किया था।
Ramayan Katha: भगवान श्रीराम और रावण के युद्ध की कथा, तो हम सहस्त्रों वर्ष से सुनते आए हैं। हम, यह भी भली भांति जानते हैं कि कैसे प्रभु श्रीराम ने वानरों और रीछों की सेना के साथ मिलकर त्रिलोक विजेता रावण को पराजित किया था, उसका सर्वनाश किया था। जबकि रावण की सेना में कुम्भकरण, अहिरावण, इन्द्रजीत मेघनाथ, अतिकाय, नरान्तक, देवान्तक और त्रिशरा जैसे अतुलित बलशाली योद्धा थे। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान राम की वानर सेना में हनुमान जी के अलावा भी एक ऐसा योद्धा था, जिसने अकेले ही रावण के सभी योद्धाओं को पराजित किया था।
रावण के दरबार में रामदूत अंगद
भगवान राम जब समुद्र पर सेतु बनाकर लंका पहुंचें, तो नीति अनुसार, उन्होंने आक्रमण से पहले दूत भेजने का विचार किया। इस पर मंत्रणा के दौरान जामवंत ने अंगद का नाम सुझाया। बालि पुत्र अंगद जब रामदूत बन रावण के दरबार में पहुंचे, तो रावण ने उपहास में कहा– कौन है तू वानर! अंगद ने भी स्वाभिमानपूर्वक उत्तर देते हुए कहा– मैं उस वानर बालि का पुत्र हूं, जिसने त्रिलोकजयी रावण को कई माह तक अपनी कांख में दबा कर वन, पर्वतों की सैर करायी थी।
श्रीराम का संदेश और रावण का अहंकार
अंगद ने अपने स्वामी श्रीराम का संदेश रावण को सुनाया और कहा– हे ऋषि पुलस्तय के पौत्र रावण! तूने अपनी शक्ति के अभिमान में माता सीता का हरण कर लिया है, उन्हें सम्मानपूर्वक लौटा दे और क्षमा मांग ले। प्रभु श्रीराम दया के सागर हैं, तेरे अपराधों को क्षमा कर देंगे। इस पर अहंकारवश रावण ने कहा– मूर्ख वानर! तेरा स्वामी राम केवल एक साधारण मानव है और न ही उसकी सेना मेरे किसी एक अकेले योद्धा के सामने टिकने के योग्य है, वो मुझे क्या क्षमा देगा।
अंगद ने किया रावण के योद्धाओं का मान मर्दन
यह सुन अंगद ने अपना एक पैर रावण के दरबार में टिका दिया और चुनौती दी कि अगर किसी भी राक्षस वीर ने मेरा पैर इस स्थान से हिला दिया, तो प्रभु राम स्वयं हार मान कर चले जाएंगे। रावण की सेना के एक से एक बलशाली योद्धा यहां तक की इंद्रजीत मेघनाद भी अंगद का पैर न डिगा सका। अपने ही दरबार में अपने सभी योद्धाओं को परास्त होता देख, अंततः रावण स्वयं अंगद का पैर डिगाने के लिए आया। तब अंगद ने अपना पैर वापस हटाते हुये कहा– हे रावण! पैर पकड़ना ही है, तो प्रभु श्रीराम का पकड़ो क्योंकि वो ही तेरे अपराध को क्षमा कर सकते हैं।
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'