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Pauranik Kathayen: माता पार्वती इस तरह कहलाईं मां शेरावाली, पढ़ें यह पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen दुर्गा मां को कई नामों से जाना जाता है। इन्हें मां अम्बे और शेरावाली भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि दुर्गा माता को शेरावाली क्यों कहा जाता है?

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 12:00 PM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 05:20 PM (IST)
Pauranik Kathayen: माता पार्वती इस तरह कहलाईं मां शेरावाली, पढ़ें यह पौराणिक कथा
Pauranik Kathayen: माता पार्वती इस तरह कहलाईं मां शेरावाली, पढ़ें यह पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen: दुर्गा मां को कई नामों से जाना जाता है। इन्हें मां अम्बे और शेरावाली भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि दुर्गा माता को शेरावाली क्यों कहा जाता है? मां को शेरावाली के नाम से पुकारे जाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। आइए पढ़ते हैं यह कथा।

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माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए हजारों वर्ष तक तपस्या की थी। तपस्या का तेज बहुत अधिक था। इस तेज से माता का रंग काला पड़ गया था। लेकिन तपस्या का फल उन्हें जरूर मिला। भगवान शिव उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए। फिर एक दिन माता पार्वती और भगवान शिव एक साथ कैलाश पर्वत पर बैठे थे। तभी हंसी-हंसी में माता पार्वती को शिवजी ने काली कहकर पुकारा। लेकिन यह पार्वती जी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने तुरंत कैलाश छोड़ दिया। वो वन में तपस्या करने चली गईं जिससे उनका गोरा रंग उन्हें वापस मिल पाए।

जब वो वन में तपस्या कर रही थीं तब एक शेर वहां आ गया। वो उन्हें खाना चाहता था। लेकिन माता की तपस्या को शेर चुपचाप बैठकर देख रहा था। माता रानी ने वर्षों तक तपस्या की। उनकी तपस्या खत्म होने तक शेर वहीं बैठा रहा। माता पार्वती की तपस्या को खत्म करने के लिए शिवजी उनके पास गए। उन्होंने माता को गोरा होने का आशीर्वाद दिया। वरदान पाने के बाद मां पार्वती नहाने चली गईं। जब वो स्नान करने गईं तो उनके शरीर से एक और काले रंग की देवी निकलीं। इनके निकलते ही माता गोरी हो गईं। इन काली माता का नाम कौशिकी पड़ गया। फिर माता पा्रवती का रंग गोरा हो गया। इससे माता रानी को एक और नाम मिला। इन्हें गौरी नाम से भी जाना जाने लगा।

जब माता रानी अपने स्थान पर वापस पहुंची तो वो शेर जो उन्हें खाने आया था वहीं बैठा मिला। इससे वो बेहद प्रसन्न हुईं और माता गौरी ने उन्हें अपना वाहन बना लिया। वो शेर पर सवार हो गईं। इसके बाद से ही उन्हें शेरावाली भी कहा जाने लगा।  


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