Pauranik Kathayen: जब भक्त की प्रसन्नता के लिए भगवान विष्णु ने सिर पर रख लिया शिवलिंग, पढ़ें पंढरपुर के विट्ठलनाथ मंदिर की कथा
Pauranik Kathayen भगवान विट्ठलनाथ भी प्रसन्न होकर अपने सिर पर शिवलिंग धारण कर लिए। तब से पंढरपुर के विट्ठलनाथ भगवान के सिर पर आज भी शिवलिंग विद्यमान है।
Pauranik Kathayen: हिन्दू धर्म में कई मतों को मानने वाले लोग हैं। उन्हीं में वैष्णव और शैव हैं। जो भगवान विष्णु को मानते हैं, वे वैष्णव हुए और जो महादेव भगवान शिव को मानते हैं, वे शैव कहलाते हैं। कई बार लोग अपनी अज्ञानता के कारण अपने मत को श्रेष्ठ मानते हैं और दूसरे का अनादर करते हैं। वे इस बात को भूल जाते हैं कि ईश्वर तो एक ही है, उसे चाहें जिस स्वरूप में स्मरण करें। आज हम आपको एक ऐसी ही कथा के बारे में बताते हैं, जिसमें भगवान शिव ने अपने भक्त के मन का अंधकार दूर किया।
एक साहूकार को काफी समय के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वह अपने क्षेत्र के सुनार नरहरि के पास खुशी-खुशी पहुंचा। उसने नरहरि से कहा कि भगवान विट्ठलनाथ की कृपा से उसे एक बेटा हुआ है। वह आज उनको रत्नों से सजा हुआ एक कमरपट्टा अर्पित करना चाहता है। इस इलाके में तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा नहीं है जो वह कमरपट्टा बना सके। चलो, भगवान विट्ठलनाथ की कमर का नाप ले लो और उसे जल्द बना दो।
सुनार नरहरि भगवान शिव का भक्त था, वह परम शैव था। उसने पंढरपुर में रहते हुए कभी भी भगवान विट्ठलनाथ के दर्शन नहीं किए थे। वह जब भी समय मिलता तो भगवान शिव के भजन और पूजन में व्यस्त रहता था। वह वैष्णवों के देव भगवान विट्ठलनाथ के दर्शन से बचता था। हमेशा सिर झुकाकर ही बाहर जाता था ताकि भगवान विट्ठलनाथ के मंदिर के शिखर का दर्शन भी गलती से न हो जाए।
उसने साहूकार को मना कर दिया। साहूकार चिंता में पड़ गया। अब वह स्वयं भगवान विट्ठलनाथ की कमर का नाप लेकर आया। उस आधार पर सुनार नरहरि ने भगवान का कमरपट्टा बना दिया। साहूकार जब भगवान को चढ़ाने गया तो वह छोटा हो गया। तब फिर सुनार से उसे बड़ा कर दिया। दोबारा साहूकार भगवान को अर्पित करने गया तो वह अनुमान से काफी बड़ा हो गया।
साहूकार सोचने लगा कि कहीं भगवान विट्ठलनाथ जी उससे नाराज तो नहीं हो गए, इसलिए वे कमरपट्टा स्वीकार नहीं कर रहे। इस बार वह सुनार से काफी निवेदन किया कि वह स्वयं जाकर भगवान की कमर का नाप लेकर आए। काफी देर के बाद सुनार ने कहा कि वह मंदिर जाएगा, लेकिन उसकी आंख पर एक पट्टी बांधनी होगी। वह हाथ से छूकर कमर की नाप ले लेगा।
शर्त के अनुसार, सुनार को आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर के अंदर लाया गया। सुनार ने जब अपने हाथों से भगवान विट्ठनाथ की कमर की नाप ली, तो दशभुज, पंचवदन, गले में सर्प की माला धारण किए भगवान शिव उसके सामने खड़े प्रतीत हुए। अपने आराध्य को सामने पाकर उसने अपनी आंखों से पट्टी खोल दी। सामने देखा कि भगवान विट्ठलनाथ थे। फिर उसने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। फिर उसने मूर्ति की नाप लेनी चाही तो सामने देवों के देव महादेव थे, पट्टी खोलते ही भगवान विष्णु के अवतार विट्ठलनाथ सामने होते।
नरहरि को अपनी गलती का एहसास हो गया। वह समझ गया कि ईश्वर तो एक ही हैं। उसने भगवान शिव से क्षमा मांग ली। भगवान शिव का भी उद्देश्य भक्त के मन के अंधकार को दूर करना था। भगवान विट्ठलनाथ भी प्रसन्न होकर अपने सिर पर शिवलिंग धारण कर लिए। तब से पंढरपुर के विट्ठलनाथ भगवान के सिर पर आज भी शिवलिंग विद्यमान है।