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Navratri 2019 Para And Barir Durga Puja: बंगाल में होती हैं दो तरह की दुर्गा पूजा: पारा और बारिर

Navratri 2019 Para And Barir Durga Puja उत्तरी कोलकाता के ताला और बागबाज़ार से लेकर दक्षिण के नकताला और बेहाला पंडाल तक कोलकाता की सड़कों करोड़ों श्रद्धालुओं से जगमगाती रहती हैं।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Mon, 30 Sep 2019 01:18 PM (IST)Updated: Mon, 30 Sep 2019 01:18 PM (IST)
Navratri 2019 Para And Barir Durga Puja: बंगाल में होती हैं दो तरह की दुर्गा पूजा: पारा और बारिर
Navratri 2019 Para And Barir Durga Puja: बंगाल में होती हैं दो तरह की दुर्गा पूजा: पारा और बारिर

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Navratri 2019 Para And Barir Durga Puja: महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के दौरान त्योहार का रंग हो या चाहे दिल्ली में दीपावली की धूम हो, हर कोई खुशहाली और अपने परिवार या दोस्तों के साथ यादगार लम्हों के लिए त्योहारों के इस मौसम का साल भर इंतज़ार करता है। 

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ऐसी ही अगर आप दुर्गा पूजा के दौरान कोलकाता गए हैं तो आप जान जाएंगे कि इसे 'खुशी का शहर' क्यों कहा जाता है। पूजा के चार दिन शहर के हर इंसान के दिलों को थामे रहता है, फिर चाहे कोई भी उम्र, जाति, वर्ग या लिंग हो, पश्चिम बंगाल का पूरा राज्य खुली बांहों और दिलों में एक-दूसरे के साथ रहने की अतुलनीय भावनाओं के साथ मां दुर्गा के स्वागत में जुट जाता है।   

उत्तरी कोलकाता के ताला और बागबाज़ार से लेकर दक्षिण के नकताला और बेहाला पंडाल तक, कोलकाता की सड़कों करोड़ों श्रद्धालुओं से जगमगाती रहती हैं।  

हालांकि, पूजा जैसी भी दिखे, लेकिन जब परंपराओं का पालन करने की बात आती है, तो कोई पीछे नहीं रहता। धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा, कोलकाता में दुर्गा पूजा की अपनी ट्रेडमार्क विशेषताएं हैं जो इसे सबसे और ज़्यादा अलग बनाती हैं। आप शायद ही जानते हों कि कोलकाता में दो तरह की दुर्गा पूजा मनाई जाती हैं। एक पारा और दूसरी बारिर।

पारा दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा का मतलब सिर्फ पंडाल नहीं होता। कोलकाता में दो तरह की दुर्गा पूजा मनाई जाती हैं। रस्मों के अलावा ये दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। एक 'परा' यानी स्थानीय पूजा जो रोशनी, डिज़ाइन, थीम, विचारों और भीड़ का एक भव्य शो है। ये पूजा पंडालों और कम्यूनिटी हॉल्स में होती है।

बारिर दुर्गा पूजा

वहीं, दूसरी ओर है बारिर मतलब घर में पूजा। इस पूजा का एक घरेलू प्रभाव होता है और ये घर वापसी की भावना के साथ लोगों को अपनी जड़ों के करीब लाती है। इस तरह की पूजा उत्तरी कोलकाता के पुराने घरों या फिर दक्षिण कोलकाता के धनी घरों में होती है।


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