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महावीर हनुमान कलियुग के जाग्रत देवता माने जाते है

महाभारत युद्ध के बाद जब भीम तथा अर्जुन को अभिमान हो गया था, तब भगवान विष्णु अवतार श्रीकृष्ण के आदेश पर हनुमान जी ने उनका भी अभिमान चूर किया ।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 11 Apr 2017 12:16 PM (IST)Updated: Tue, 11 Apr 2017 03:53 PM (IST)
महावीर हनुमान कलियुग के जाग्रत देवता माने जाते है
महावीर हनुमान कलियुग के जाग्रत देवता माने जाते है

 आत्मज्ञान की साधना के लिए बल, बुद्धि और विद्या-ये तीनों गुण अनिवार्य हैं। इन तीनों गुणों के समन्वय के अद्वितीय उदाहरण हैं हनुमान जी। ग्यारहवें रुद्रावतार बजरंग बली अहंकार को नष्ट करने वाले हैं।

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बजरंग बली, संकट मोचन, अंजनिसुत, पवनपुत्र, मारुतिनंदन आदि नामों से विख्यात महावीर हनुमान को कलियुग का जाग्रत देवता माना जाता है। भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार हनुमान का जीवन बल, बुद्धि और विद्या के समन्वय का अद्वितीय उदाहरण है। हमारे धर्मशास्त्रों में आत्मज्ञान की साधना के लिए इन्हीं तीन गुणों की अनिवार्यता बताई गई है। एक की भी कमी हो, तो साधना का उद्देश्य सफल नहीं हो सकता है। एक तो

साधना के लिए बल जरूरी है। निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता। दूसरे, साधक में बुद्धि और विचार शक्ति होनी चाहिए। इसके बिना साधक पात्रता विकसित नहीं कर पाता और तीसरे विद्या, क्योंकि विद्यावान व्यक्ति ही आत्मज्ञान हासिल कर माया की ग्रंथि खोल सकने में सक्षम हो सकता है।

वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि साधक को वन, सर (जलाशय) और शैल के अनुरूप साधना करनी

चाहिए। वन की तरह साधक की साधना भी परोपकारी होनी चाहिए। उसमें भावों का कोई भेद-भाव न हो। जिस तरह सर यानी सरोवर का जल स्वच्छ व निर्मल होता है, वैसे ही साधक की बुद्धि भी स्वच्छ-निर्मल और वैचारिक प्रदूषण से रहित होनी चाहिए। साधक को शैल यानी पर्वत के समान बलशाली होना चाहिए। जैसे पर्वत धूप और वर्षा सब सहन करता रहता है, उसी तरह साधक को भी सहनशील होना चाहिए, तभी बल स्थिर रह सकेगा। इस

कसौटी पर पूर्ण उतरते हैं भक्त शिरोमणि हनुमान। वे जन्मे ही रामकाज के निमित्त। प्रभु श्रीराम के जीवन का प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य हनुमान के द्वारा सम्पन्न हुआ। चाहे प्रभु श्रीराम की वानरराज सुग्रीव से मित्रता करानी हो, सीता माता की खोज में अथाह सागर को लांघना हो, स्वर्ण नगरी को जलाकर लंकापति का अभिमान तोड़ना हो, संजीवनी लाकर लक्ष्मण जी की प्राण-रक्षा करनी हो, प्रत्येक कार्य में भगवान राम के प्रति उनकी अनन्य आस्था प्रतिबिंबित होती है।

‘रामकाज कीन्हें बिना मोहिं कहां विश्राम’। अनथक राज-काज ही उनके जीवन का मूल ध्येय था। हनुमान जी के बल और बुद्धि से जुड़ा यह प्रसंग हम सब जानते हैं कि श्रीराम की मुद्रिका लेकर महावीर हनुमान जब सीता माता की खोज में लंका की ओर जाने के लिए समुद्र के ऊपर से उड़ रहे थे, तभी देवताओं के संकेत पर सुरसा ने

उन्हें अपना ग्रास बनाने के लिए अपना बड़ा-सा मुंह फैला दिया। यह देख हनुमान ने भी अपने शरीर को दोगुना कर लिया। सुरसा ने भी तुरंत सौ योजन का मुख कर लिया। यह देख हनुमान जी लघु रूप धरकर सुरसा के मुख के अंदर जाकर बाहर लौट आए। सुरसा हनुमान के बुद्धि-कौशल को देखकर दंग रह गई और उसने उन्हें कार्य में सफल होने का आशीर्वाद देकर विदा किया। इसी तरह बजरंग बली ने अपने बुद्धि-कौशल का प्रमाण सिंहिका

और लंकिनी नामक राक्षसियों को भी दिया। भारतीय-दर्शन में सेवाभाव को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह सेवाभाव ही हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करता है। इस सेवाभाव का उत्कृष्टतम उदाहरण हैं महाबली हनुमान। रामकथा में हनुमान जी का चरित्र इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्शों को गढ़ने में अहम भूमिका निभाई। रामकथा में हनुमान जी के चरित्र से हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हानुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। 

जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान जी ने उसका ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। महाभारत युद्ध के बाद जब भीम तथा अर्जुन को अभिमान हो गया था, तब भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के आदेश पर हनुमान जी ने उनका भी अभिमान चूर किया था। हनुमान जी सही मायने में सर्वतोमुखी शक्ति के पर्याय कहे जाते हैं। जितेंद्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठतम महावीर शरीर के साथ-साथ मन से भी अपार बलशाली थे। अष्ट चिरंजीवियों में शुमार महाबली हनुमान अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं। उनके ऊपर राम से अधिक राम के दास की उक्ति अक्षरश: चरितार्थ होती है। शायद यही कारण है कि देश में भगवान श्रीराम से अधिक उनके अनन्य भक्त महावीर हनुमान के मंदिर हैं। राम ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। कहा जाता है कि उसी वरदान के कारण आज भी हनुमान जी मौजूद हैं।

 पूनम नेगी 


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