आज से शुरू हो रहा है पवित्र माघ मास, जानिए इसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महात्म
लोकजीवन में माघ महीने का अत्यंत महत्व है। शास्त्रों में माघ माह के तप को अश्वमेध यज्ञ एवं पौण्डरीक यज्ञ के साथ मोक्ष विष्णुपद की प्राप्ति वाला बताया गया है। आधुनिक शोधों में उत्तम शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य वाला महीना कहा गया है।
लोकजीवन में माघ महीने का अत्यंत महत्व है। इस महीने में सूर्योदयपूर्व स्नान और दान का विशेष महत्व है। शास्त्रों में माघ महीने में पवित्र नदियों में स्नान एवं पूजन की जो महिमा कही गयी है, उसके बहुआयामी लाभ हैं। शास्त्रों में माघ माह के तप को अश्वमेध यज्ञ एवं पौण्डरीक यज्ञ के साथ मोक्ष, विष्णुपद की प्राप्ति वाला बताया गया है। आधुनिक शोधों में उत्तम शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य वाला महीना कहा गया है। इसी के साथ शीतकाल के इस ऋतु में स्नान एवं पूजन से प्रकृति के साथ तादात्म्य बनाने का भी अवसर मिलता है ।
आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण की रचना के पूर्व ही जिन दो महीनों में प्रात:काल स्नान एवं श्रीहरि के पूजन का चर्चा की है, उसमें पहला मास माघ ही है। दूसरे पर चैत्र स्नान का उल्लेख है। माघ महीने में स्नान के महत्व की एक कथा का भी उल्लेख है। राजा सुमति और सत्यवती का पूर्वजन्म दूषित था लेकिन अनजाने में वशिष्ठ ऋषि के आश्रम पर जाकर स्नान-पूजन से वे अगले जन्म में राजा हुए । आशय स्पष्ट है कि इस महीने में प्रयाग में जुटने वाले संतों के सान्निध्य से रूप-स्वरूप तथा आचरण में बदलाव आता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी 'माघ मकरगत रबि जब होई तीरथपतिहिं आव सब कोईÓ चौपाई में माघ माह की महत्ता पर पूरा जोर डाल दिया। मान्यता है कि इस महीने में प्रयाग के संगम पर सूर्य की किरणों का जल पर अद्भुत असर पड़ता है। जल में अमृत-तत्व की उत्पत्ति होती है। माघ महीने का कृष्ण पक्ष हेमंत तो शुक्ल पक्ष शिशिर ऋतु है। शीतकाल के इस यौवनकाल में स्नान से शरीर के रस-रसायनों में यौवनकाल जैसा तेज प्राप्त होता है। जो शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाता है। सूर्यनारायण दक्षिणायण से उत्तरायण होते हैं। मेडिकल साइंस की दृष्टि से इस अवधि में सूर्य की किरणों का सेवन अति लाभकारी है।
आध्यात्मिक ऋषियों ने इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए पौष मास की पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा तक पवित्र नदियों में स्नान एवं भगवान के पूजन का उल्लेेख किया है। प्रयाग में भरद्वाज ऋषि ने इसी अवधि में संगम स्नान के लिए आए याज्ञवल्क्य ऋषि से अपनी अज्ञानता को दूर करने की प्रार्थना की। याज्ञवल्क्य ऋषि ने श्रीहरि स्वरूप भगवान श्रीराम की महिमा से उन्हें परिचित कराया था । श्रीराम के प्रति भक्ति का फल ही था कि वनगमन के समय निकले भगवान श्रीराम भरद्वाज ऋषि के आश्रम पर आए थे। ब्रह्मपुराण में माघ महीने में स्नान-काल की अवधि अरुणोदय (प्रात:काल) कही गई है। इस महीने में आस्थावान जो लोग नियमित रूप से स्नान करते हैं, उनके लिए विशेष रूप से यह कहा गया है। इसी पुराण में कहा गया है कि जो भगवान कृष्ण का ध्यान कर इस अवधि में स्नान करता है, वह देवपूजित होता है। पद्मपुराण में कहा गया है कि अशक्त व्यक्ति को भी कम से कम तीन दिन माघ माह में सूर्योदय के समय पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। प्रयाग के संगम में स्नान गंगा-सागर स्नान की तरह फलदायी है। नारद पुराण में होम-हवन का विधान बताया गया है। हवन में तिल के प्रयोग से अग्नि का प्रच्च्वलन लाभदायी है। इस अवधि में दान की भी महिमा है जिसमें गर्म वस्त्रों आदि के साथ तिल के दान का विशेष उल्लेख है। तिल पदार्थ में एक चौथाई शर्करा (चीनी या गुड़)और तीन चौथाई तिल होना चाहिए। माघ महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक की अवधि भी नवरात्र व्रत की तरह है। लौकिक रूप से इसे गुप्त नवरात्र कहते हैं। इस समय ज्ञान की शक्तियां अज्ञान के महिषासुर का वध करती हैं ।
- सलिल पांडेय
आध्यात्मिक विषयों के अध्येता