Punswan Sanskar: जानें क्या है 16 संस्कारों में पुंसवन संस्कार, क्यों है गर्भवती महिला के लिए अहम
Punswan Sanskar हिंदू धर्म में सोलह संस्कार होते हैं ये तो हम सभी जानते हैं लेकिन वो संस्कार क्या हैं और उनका महत्व क्या है ये शायद ही ज्यादा लोगों को पता हो।
Punswan Sanskar: हिंदू धर्म में सोलह संस्कार होते हैं ये तो हम सभी जानते हैं लेकिन वो संस्कार क्या हैं और उनका महत्व क्या है ये शायद ही ज्यादा लोगों को पता हो। इससे पहले हमने आपको सोलह संस्कारों में से पहले संस्कार... गर्भाधान के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी और आज हम आपको इसका दूसरा संस्कार बताने जा रहे हैं। पुंसवन संस्कार... सोलह संस्कारों में से यह दूसरा संस्कार है। यह किसी भी गर्भवती महिला के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि, आजकल इस महत्व बेहद कम हो चला है। लेकिन हमारी कोशिश है कि हम आपको इस संस्कार के महत्वपूर्ण पहलूओं की जानकारी दें जिससे हम सभी अपनी जड़ो से जुड़े रहें।
क्या होता है पुंसवन संस्कार: जैसा कि हमने आपको बताया यह संस्कार गर्भवती महिला के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। गर्भघारण करने के तीन महीने पश्चात शिशु के मस्तिष्क का विकास शुरु हो जाता है। इसी समय पुंसवन संस्कार के द्वारा माता के गर्भ में पल रहे शिशु में संस्कारों की नींव रखी जाती है। शिशु इसी समय गर्भ में काफी कुछ सीखना शुरू कर देता है। कहते हैं इस द्वितीय संस्कार को करने से संतान एक दम हष्ट-पुष्ट होती है। साथ ही गर्भास्थ शिशु की रक्षा भी होती है। तो चलिए आगरा की ज्यातिषाचार्य पूनम वार्षनेय जी से जानते हैं पुंसवन संस्कार का महत्व:
ज्यातिषाचार्य पूनम वार्षनेय जी ने बताया कि गर्भस्थ शिशु के समुचित विकास के लिए गर्भणी का यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार को गर्भ सुनिश्चित होने के तीन महीने तक पुंसवन संस्कार को कर दिया जाना चाहिए। इस दौरान शिशु की माता को अच्छी पुस्तकें पढ़नी चाहिए। साथ ही अच्छे वातावरण में रहना चाहिए और अच्छी बातैं सोचनी चाहिए। इससे बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। बालक को संस्कारवान बनाने के लिए माता-पिता को अच्छी तरह से रहना चाहिए।
अगर इस संस्कार को आज के परिवेश में समझा जाए तो आप जो भी काम करें उसे भली प्रकार से करें। किसी तरह की कलह नहीं करनी चाहिए और अच्छे विचार ही मन में लाने चाहिए। अच्छी हरी सब्जियां आदि खाएं जिससे बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़ना शुरू हो जाए। इस संस्कार में माता-पिता को गर्भ के महत्व को समझना चाहिए। जो लोग माता के साथ रहते हैं उन्हें गर्भवती महिला का पूरा ख्याल रखना चाहिए जिससे शिशु पर अच्छा प्रभाव पड़े। गर्भ के माध्यम से अवतरित होने वाले जीव को बेहतर संस्कार मिल पाएं यही इस संस्कार का मतलब है। सुसंस्कारों की स्थापना के लिए संकल्प करें, पुरुषार्थ करें और देव अनुग्रह के संयोग का प्रयास किया जाना चाहिए।
पुंसवन संस्कार को करने के लिए एक अच्छे दिन (सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार) खीर तैयार की जाए। पूजा की थाली तैयार की जाए जिसमें रोली, चावल, पुष्प, तुलसी, गंगाजल आदि सम्मिलित हों। भगवान को भोग लगाएं। गर्भणी को कलावा बांधे। घर के सभी लोग एक साथ बैठकर भोग खाएं यही पुंसवन संस्कार है।