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Namkaran Sankar: जानें क्या है नामकरण संस्कार, बच्चे के लिए क्या है इसका महत्व

Namkaran Sankar ऐसा कहा जाता है कि कर्मों की पहचान नाम से होती है। ऐसे में नाम सोच समझकर कर रखा जाना बेहद आवश्यक है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 11:00 AM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2020 12:32 PM (IST)
Namkaran Sankar: जानें क्या है नामकरण संस्कार, बच्चे के लिए क्या है इसका महत्व
Namkaran Sankar: जानें क्या है नामकरण संस्कार, बच्चे के लिए क्या है इसका महत्व

Namkaran Sankar: हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से पांचवां संस्कार नामकरण है। हम आपको गर्भाधारण, पुंसवन, सीमंतोन्नयन एवं जातकर्म संस्कार के बारे में पहले ही बता चुके हैं और आज हम आपको नामकरण संस्कार के बारे में बताने जा रहे हैं। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है इस संस्कार में नवजात बच्चे का नाम रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कर्मों की पहचान नाम से होती है। ऐसे में नाम सोच समझकर कर रखा जाना बेहद आवश्यक है। हिंदू धर्म में किसी भी शिशु का नामकरण पूरे विधि विधान से किया जाता है।

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नामकरण संस्कार का महत्व इस श्लोक से समझा जा सकता है:

आयुर्वेदभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा।

नामकर्मफलं त्वेतत् समुदृष्टं मनीषिभि:।।

अर्थ: नामकरण संस्कार से जातक आयु और तेज में बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही अपने नाम, आचरण, कर्म से जातक ख्याति प्राप्त करता है और अपनी अलग पहचान बनाता है।

जानें कब किया जाता है नामकरण संस्कार:

आमतौर पर नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के 10 दिन बाद किया जाता है। माना जाता है कि शिशु के जन्म से सूतक प्रारंभ हो जाता है। इसकी अवधि अलग-अलग होती है। पाराशर स्मृति के अनुसार, ब्राह्मण वर्ण में सूतक 10दिन, क्षत्रियों में 12 दिन, वैश्य में 15 दिन और शूद्र एक महीने का माना गया है। हालांकि, आज के समय में वर्ण व्यवस्था अप्रासंगिक हो गई है ऐसे में इसे 11वें दिन किया जाता है। पारस्कर गृहयसूत्र में कहा गया है, “दशम्यामुत्थाप्य पिता नाम करोति”। इसका मतलब 10वें दिन भी नामकरण संस्कार किया जाता है। यह पिता द्वारा संपन्न होता है। वहीं, यह संस्कार 100वें दिन या शिशु के जन्म से 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी किया जाता है। गोभिल गृहयसूत्रकार लिखते भी हैं, “जननादृशरात्रे व्युष्टे शतरात्रे संवत्सरे वा नामधेयकरणम्”।

इस तरह किया जाता है नामकरण संस्कार:

नामकरण संस्कार के दिन बच्चों को शहद चटाया जाता है। फिर जातक को सूर्यदेव के दर्शन कराए जाते हैं। सूर्य के दर्शन करवाने के पिछे मान्यता है कि बच्चा भी सूर्य की तरह तेजस्वी हो। शिशु को धरती माता को भी नमन कराया जाता है। साथ ही सभी देवी-देवताओं का भी स्मरण किया जाता है। शिशु के लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए भी प्रार्थना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जातक का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसी नक्षत्र के अक्षर से जातक का नाम रखा जाए तो बेहतर होता है। हालांकि, नाम वंश, गौत्र आदि का भी ध्यान रखकर रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नामकरण में दो नाम रखे जाते हैं। इनमें से एक नाम प्रचलित होता है। वहीं, दूसरा गुप्त नाम होता है। यह पत्री में दर्ज होता है।


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