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Karka Sankranti 2020: क्या होती है कर्क सन्क्रांति, ये मकर सन्क्रांति से है कितनी अलग

Karka Sankranti 2020 आज गुरुवार को देशभर में कर्क संक्रांति मनाई जा रही है। ऐसे में बहुत से लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर कर्क संक्रांति होती क्या है?

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 16 Jul 2020 09:44 AM (IST)Updated: Thu, 16 Jul 2020 09:44 AM (IST)
Karka Sankranti 2020: क्या होती है कर्क सन्क्रांति, ये मकर सन्क्रांति से है कितनी अलग
Karka Sankranti 2020: क्या होती है कर्क सन्क्रांति, ये मकर सन्क्रांति से है कितनी अलग

Karka Sankranti 2020: आज गुरुवार को देशभर में कर्क संक्रांति मनाई जा रही है। ऐसे में बहुत से लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर कर्क संक्रांति होती क्या है? जागरण आध्यात्म अपने पाठकों के लिए विस्तार से यही बता रहा है कि क्या होती है कर्क संक्रान्ति।

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सूर्य का एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करना सन्क्रांति कहलाता है। ये वो वक्त है जो दान पुण्य के लिए उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस सन्क्रांति काल में दान पुण्य का सबसे अधिक फल प्राप्त होता है। अब बात करते हैं कर्क सन्क्रांति की। इसे सावन या श्रावण सन्क्रांति भी कहते हैं। जाहिर तौर पर स्पष्ट है कि ये शिव भगवान की अराधना का महीना है। इसमें सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश होना श्रावण सन्क्रांति कहलाता है। सीधे तौर पर समझें तो सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश कर्क सन्क्रांति का मौका होता है। सावन के महीने में इस दिन लोग शिव भगवान को याद कर दान पुण्य करते हैं। हिन्दू धर्म इसे काफी महत्व दिया गया है।

आपको याद होगा हर साल जनवरी के महीने में 15 या 15 जनवरी को मकर सन्क्रांति मनाई जाती है। तब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। देश के कई हिस्सों में दान पुण्य के अलावा इस दिन पतंगे भी उड़ाई जाती हैं। मकर राशि में प्रवेश को सूर्य का उत्तरायण होना भी कहा जाता है। वहीं इसकी विपरीत सूर्य का दक्षिणायन होना कर्क सन्क्रांति कहलाता है। कर्क सन्क्रांति के बाद से दिन छोटे होने लगते हैं और राते लंबी होना शुरू हो जाती है।

हमारे पंचांगों के मुताबिक, कर्क सन्क्रांति के बाद से वर्षा ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। मौसम विभाग जिसे मानसून का आना कहता है उसे हमारे प्राचीन समय में कर्क सन्क्रांति से आंका जाता था। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाता है। जैन धर्म में संत लोग चातुर्मास पर भ्रमण नहीं करते, वर्ष ऋतु के कारण एक निश्चित स्थान पर ही चातुर्मास की अवधि बिताते हैं। 


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