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Kalashtami July 2021: आज कालाष्टमी पर जानें, क्या है भगवान शिव के काल भैरव आवतार की कथा

Kalashtami July 2021 हिंदी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के काल भैरव रूप की पूजा की जाती है। आज कालाष्टमी पर जानते हैं भगवान शिव के काल भैरव के रूप में प्रकट होने की कथा।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Thu, 01 Jul 2021 07:15 PM (IST)Updated: Thu, 01 Jul 2021 07:15 PM (IST)
Kalashtami July 2021: आज कालाष्टमी पर जानें, क्या है भगवान शिव के काल भैरव आवतार की कथा
आज कालाष्टमी पर जानें, क्या है भगवान शिव के काल भैरव आवतार की कथा

Kalashtami July 2021: हिंदी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के काल भैरव रूप की पूजा की जाती है। काल भैरव को भगवान शिव का पूर्णावतार माना जाता है, इनकी पूजा विशेषकर शैव और शाक्त संप्रदाय में की जाती है। काल भैरव को अत्यंत उग्र और तामसिक प्रवृत्ति का माना जाता है। इनकी पूजा-अर्चना से भक्त निर्भय और निडर हो जाते हैं, उन्हें मृत्यु का भी भय नहीं रहता। काल भैरव स्वयं काल के उत्पत्तिकर्ता हैं। आज आषाढ़ मास की कालाष्टमी पर जानते हैं भगवान शिव के काल भैरव के रूप में प्रकट होने की कथा।

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भगवान शिव के काल भैरव अवतार की कथा

शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार के प्रश्न को लेकर मतभेद हो गया। ब्रह्मा जी को स्वयं के सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार होने का अत्यधिक अहंकार हो गया था। अतः विवाद और बढ़ गया, दोनों प्रश्न का उत्तर जानने के लिए वेदों के पास गए। वेदों ने उन्हें बताया कि सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार भगवान शिव हैं।

वेदों का उत्तर सुनकर ब्रह्मा और विष्णु हंसने लगे। तभी भगवान शिव वहां एक दिव्य ज्योति के रूप में प्रकट हुए। भगवान शिव के इस रूप को देखकर ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो गए। उनका पांचवां सिर क्रोध से तपने लगा। तब भगवान शिव, कालपुरुष के रूप में प्रकट हुए, जिन्हें काल भैरव के नाम से जाना जाता है। काल भैरव ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी के अहंकार रूपी पांचवें सिर को धड़ से अलग कर दिया। परंतु काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था।

काल भैरव की ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति

भगवान शिव ने काल भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए सभी तीर्थों के दर्शन करने को कहा। काल भैरव अपने हाथ में ब्रह्मा जी का पांचवां सिर लेकर सभी तीर्थ स्थलों पर गए और सभी पवित्र नदियों में स्नान किया, लेकिन उनको ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति नहीं मिल रही थी। अंततः वे काशी पहुंचे, वहां पहुंचते ही उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। उनके हाथ से जिस स्थान पर ब्रह्मा जी का पांचवां सिर गिर पड़ा। उस स्थान को आज कपाल मोचन तीर्थ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि काल भैरव तब से भगवान शिव के आदेशानुसार काशी के कोतवाल के रूप में आज भी काशी में ही विराजते हैं। इनके दर्शन के बिना काशी की तीर्थयात्रा का फल नहीं मिलता है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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