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कर्मफल दाता शनिदेव की इन विशेषताओं को नहीं जानते होंगे आप, पढ़ें यहां

Shanidev शनिदेव का प्रताप ऐसा होता है कि ये राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं। इनके बारे में ऐसी ही विशेषताएं आज हम आपको यहां बता रहे हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 08 Aug 2020 08:00 AM (IST)Updated: Sat, 08 Aug 2020 08:07 AM (IST)
कर्मफल दाता शनिदेव की इन विशेषताओं को नहीं जानते होंगे आप, पढ़ें यहां
कर्मफल दाता शनिदेव की इन विशेषताओं को नहीं जानते होंगे आप, पढ़ें यहां

Shanidev: जैसे कि हम इससे पहले के लेखों में आपको बता चुके हैं कि शनिदेव मारक, अशुभ और दु:ख का कारक नहीं हैं। यह न्यायधीश हैं। लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। शनिदेव अत्यंत ही विशिष्ट देव हैं। बता दें कि ये देवता भी हैं और ग्रह भी। शनिदेव का प्रताप ऐसा होता है कि ये राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं। इनके बारे में ऐसी ही विशेषताएं आज हम आपको यहां बता रहे हैं।

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जानें शनिदेव की ये विशेषताएं:

  • शनिदेव मृत्युलोक के स्वामी हैं जो व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उन्हें फल देते हैं। इन्हें की आधार पर ही ये व्यक्ति को सजा देकर सुधारने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • शनिदेव का रंग काला होता है। ऐसे में इनपर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ता है।
  • इनकी धातु लौह-इस्पात है। यह बेहद शक्तिशाली है।
  • शनि को तेल, कोयला, लौह, काला तिल, उड़द, जूता, चप्पल अर्पित किया जाता है।
  • अगर शनिदेव की स्थापना की जा रही है तो समय और श्रम को सर्वोत्तम दान माना जाता है।
  • ये आध्यात्म के मालिक कहे जाते हैं। शनिदेव की उपासना आराधना, साधना, सिद्धि हेतु बेहद जरूरी होती है।
  • शनिदेव सदैव रोगमुक्ति तथा आयुवृद्धि की कामना करते हैं।
  • ये कलयुग के साक्षात भगवान हैं।
  • शनिदेव इस जगत के शाश्वत असाधारण देव हैं।
  • इनका वाहन गिद्ध है। साथ ही इनका रथ लोहे का बना है।
  • इनका आयुध-धनुष्य बाण और त्रिशूल है।

शनिदेव के मंत्र:

शनिदेव के 5 मंत्र ऐसे हैं जिनका उच्चारण पूरे मन से श्रद्धपूर्वक करने पर व्यक्ति के कष्टों का अंत होता है। ध्यान रहे कि व्यक्ति को इन मंत्रों का उच्चारण एकदम ठीक तरह से करना होगा। कहीं भी कोई त्रुटी नहीं होनी चाहिए।

  • ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शन्योरभिस्त्रवन्तु न:।
  • ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
  • मंत्र- ॐ ऐं ह्लीं श्रीशनैश्चराय नम:।
  • कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
  • सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।

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