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जानिए, क्या सीता स्वयंवर में गया था लंका नरेश रावण

किदवंती है कि त्रेतायुग में लंका नरेश रावण को विश्व विजेता की उपाधि मिली थी। कालांतर में विश्व विजेता को इच्छा विरुद्ध जाकर पराई स्त्री को छूने की मनाही थी। आसान शब्दों में कहें तो शास्त्र विरुद्ध था। एक बार रावण अप्सरा रंभा के साथ दुराचार करने की कोशिश की।

By Umanath SinghEdited By: Published: Thu, 09 Dec 2021 09:29 AM (IST)Updated: Thu, 09 Dec 2021 09:29 AM (IST)
जानिए, क्या सीता स्वयंवर में गया था लंका नरेश रावण
जानिए, क्या सीता स्वयंवर में गया था लंका नरेश रावण

सनातन धार्मिक ग्रंथों में चार युगों का वर्णन किया गया है, जो क्रमशः सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग हैं। त्रेता युग का वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में है। रामचरितमानस में तुलसीदास ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बाल्यकाल समेत संपूर्ण जीवन का वर्णन किया है। हालांकि, एक रोचक तथ्य को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। रोचक तथ्य है यह कि क्या सीता स्वयंवर में लंका नरेश रावण गया था? इस विषय को लेकर सटीक जानकारी महर्षि वाल्मीकि के रामायण में है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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क्या है कथा

किदवंती है कि त्रेतायुग में लंका नरेश रावण को विश्व विजेता की उपाधि मिली थी। कालांतर में विश्व विजेता को इच्छा विरुद्ध जाकर पराई स्त्री को छूने की मनाही थी। आसान शब्दों में कहें तो शास्त्र विरुद्ध था। एक बार रावण शास्त्र विरुद्ध जाकर स्वर्ग लोक में उपस्थित अप्सरा रंभा के साथ दुराचार करने की कोशिश की। उसी समय रंभा ने लंका नरेश रावण को बताया कि वह उनकी पुत्र वधू (बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर की अर्धांगनी) है। जब नलकुबेर को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने रावण को श्राप दे दिया कि अगर वह इच्छा विरुद्ध जाकर किसी पराई स्त्री को छूने की कोशिश की, तो उनके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। रावण को यह ज्ञात हो गया कि वह अब किसी स्त्री को उनकी मर्जी के बिना छू नहीं सकता है।

कालांतर में जब सीता स्वंयवर हुआ, तो लंका नरेश रावण भी माता सीता को पाने हेतु जनकपुर पहुंचें, किंतु माता जानकी के मन में प्रेम भावना न रहने के चलते लंका नरेश रावण की इच्छा पूरी नहीं हो सकी। तत्पश्चात, रावण स्वंयवर छोड़कर लंका प्रस्थान कर गए। कालांतर में जब भगवान श्रीराम वनवास गए, तो माता सीता को पाने हेतु उनका हरण किया। हालांकि, इस बार भी उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई। अंत में भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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