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गणपति के 8 अवतारों में से सातवें हैं विघ्नराज जानें इनकी कहानी

श्री गणेश ने मानव जाति के कष्टों का हरण करने के लिए 8 बार अवतार लिया। उन्हीें की कहानी सुनिए पंडित दीपक पांडे से, आज जानिए विकट विघ्नराज के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 03:21 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 11:51 AM (IST)
गणपति के 8 अवतारों में से सातवें हैं विघ्नराज जानें इनकी कहानी
गणपति के 8 अवतारों में से सातवें हैं विघ्नराज जानें इनकी कहानी

गणेश के अवतार 

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पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, और धूम्रवर्ण। इस क्रम में आज जानिए श्रीगणेश के विघ्नराज अवतार के बारे में।  

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मां पार्वती के हास्य से उपजे राक्षस को नियंत्रित करने गणपति आये विघ्नराज बन कर 

बताते हैं शिव प्रिया पार्वती अपनी सखियों से बात करते हुए हंस पड़ी तो उनके हास्य से एक पुरुष प्रकट हुआ इसे माता पार्वती ने मम नाम दिया आैर गणपति की उपासना करने के लिए कहा। मम ने श्री गणेश से निर्विघ्न विजय का अजीब वरदान किया आैर दैत्यों से मित्रता कर ली। इस मैत्री के चलते उसने तीनों लोकों को कष्ट में डाल दिया। जिस पर गणपति ने विघ्नराज अवतार लेकर उसको सबक सिखाया आैर पुन ण्र्म राज्य स्थापित किया। मामा सुर श्री गणेश के आदेश पर उस स्थान से दूर रहने चला गया जहां उनकी पूजा ना होती हो। 

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तो इसलिए बने विघ्नहर्ता गणेश विघ्नराज 

पौराणिक कथाआें के अनुसार एक बार पार्वती जी अपनी सखियों के साथ वार्तालाप कर रही थीं तभी उन्हें जोर की हंसी आ गर्इ। उनके इस हास्य से एक पुरुष का जन्म हुआ जिसे माता शक्ति ने अपना अंश मान कर नाम रखा मम। उन्होंने मम को गणेश जी के षडक्षर मंत्र का ज्ञान दिया और आदेश दिया की तुम विनायक की भक्ति करो उसी से तुम्हारा कल्याण होगा। मम जब वन गया तो वहां उसकी अन्य दैत्यों से मैत्री हो गर्इ, जिन्होंने उसे आसुरी शक्तियों का ज्ञान दिया। इसके बाद वो गणेश जी का आराधना में लीन होकर घोर तप करने लगा। सहस्त्रों वर्ष की तपस्या के बाद उसे गणपति के दर्शन प्राप्त हुए आैर उन्होंने वर मांगने के लिए कहा। तब मम ने समस्त ब्रह्माण्ड का राज्य तथा युद्ध में आने वाले समस्त विघ्नों से मुक्त रहने का वरदान मांगा। गणेश जी ने कहा की ये बहुत दुसाध्य वर है परन्तु मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं इसीलिए ये वर मै तुम्हे देता हूं। इस बात की जानकारी मिलने पर उसके असुर मित्र शम्बर को अति प्रसन्नता हुर्इ आैर उसने अपनी पुत्री से उसका विवाह करके उसे राज्य सौंप कर दैत्यों का राजा घोषित कर दिया। इस तरह मम अब मामासुर बन गया। इसके बाद उसने पहले पृथ्वी, फिर पाताल आैर उसके बाद शिवलोक, विष्णुलोक, आैर देवलोक पर भी अधिकार कर लिया। तब सभी गणेश जी की शरण में पहुंचे। इसके बाद विघ्नहर्ता ने विघ्नराज अवतार में प्रकट हुए आैर देवर्षि नारद को अपना दूत बना कर मामासुर को संदेश भिजवाया कि वह अत्याचार और अधर्म का मार्ग छोड़ कर उनकी शरण में नहीं आया तो उसका सर्वनाश निश्चित है । दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने भी उसको समझाया कि विघ्नराज से वैर ना करे, लेकिन वो नहीं माना आैर विघ्नराज से युद्घ करने के लिए तैयारहो गया। इस पर विघ्नराज ने कमल पुष्प को अस्त्र बना कर असुर सेना पर छोड़ दिया। उसकी सुगंध सारी सेना मूर्छित और शक्तिहीन हो कर भूमि पर गिर पड़ी। तब मामासुर विघ्नराज के प्रभाव से अवगत हुआ आैर भयभीत हो कर उनकी शरण में आ गया। तब भगवान ने उसे कहा कि वो हर उस स्थान से दूर रहे जहां गणेश जी की पूजा होती हो। इस तरह संसार को उसके आतंक से मुक्ति मिली। 

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