गणपति के 8 अवतारों में से एक हैं एकदंत जानें इनकी कहानी
श्री गणेश ने मानव जाति के कष्टों का हरण करने के लिए 8 बार अवतार लिया। उन्हीें की कहानी सुनिए पंडित दीपक पांडे से, जानिए एकदंत अवतार के बारे में।
श्री गणेश के अवतार
पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, गजानन, एकदंत, विघ्नराज, महोदर, लंबोदर, विकट, और धूम्रवर्ण। इस क्रम में आज जानिए श्रीगणेश के एकदंत अवतार के बारे में।
गणपति का दूसरा अवतार एकदंत
भगवान गणेश ने एकदंत रूप में मदर सुर नाम के राक्षस को पराजित करके पाताल में भेज दिया था। गणपति का दूसरा प्रमुख अवतार एकदंत को माना जाता है। बताते हैं कि महर्षि च्यवन ने मद की सृष्टि की उसे महर्षि च्यवन के भ्राता दत्त गुरु शुक्राचार्य ने शक्ति मंत्र देकर आदि शक्ति की साधना की प्रेरणा दी। इसके पश्चात उसने घोर तपस्या से आदिशक्ति से ब्रह्मांड विजय का वरदान प्राप्त किया। शक्ति संपन्न होने के बाद उसने तीनों लोको के साथ ही कैलाश को भी जीत लिया। इस कारण धर्म-कर्म लुप्त हो गए असुरों से त्रस्त देवगण सनत कुमार के पास गए। जिन्होंने एकदंत की उपासना का परामर्श दिया। एकदंत की उपासना से प्रसन्न होकर भगवान श्री गणेश ने युद्ध में मदर सुर को परास्त कर उसे अपनी शरण में ले कर पाताल लोक में भेज दिया।
एकदंत की संपूर्ण कथा
प्राचीन काल में मदासुर नाम का एक बलवान और पराक्रमी दैत्य था वह च्यवन ऋषि का पुत्र था एक बार वह अपने पिता से आज्ञा लेकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास गया और समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने की इच्छा प्रकट की। शुक्राचार्य ने मदासुर को अपना शिष्य बना लिया और शक्ति के एकाक्षरी मंत्र की विधि पूर्वक दीक्षा दी । दीक्षा लेकर मदासुर वन में चला गया और वर्षों तक कठोर तपस्या करता रहा। इस घोर तपस्या के दौरान चींटीयों आैर दीमक ने उसके शरीर पर बांबीयां बना ली आैर, उसके चारों ओर वृक्षों का घना जंगल उग आया। ऐसी विकट तपस्या से मां आदि शक्ति प्रसन्न हुई और उसे निरोगी एवम् समस्त ब्रह्माण्ड का राजा होने का वरदान दिया इसके बाद मदासुर ने पहले सम्पूर्ण धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित किया। फिर स्वर्ग पर चढ़ाई करके इन्द्रादि देवताओं को पराजित कर स्वर्ग का भी शासक बन बैठा। उसने प्रमदासुर की कन्या सालसा से विवाह किया आैर तीन पुत्रों का पिता बना। अंत में उसने भगवान शिव को भी पराजित करके सब तरफ असुरों का शासन स्थापित कर दिया। इसके चलते पृथ्वी पर समस्त धर्म-कर्म लुप्त हो गये। चारों आेर हाहाकार मच गया आैर देवताओं एंव मुनियों के दुख का पारावार ना रहा।
इस स्थिति से चिन्तित देवता सनत कुमार के पास गये, आैर असुर के विनाश एंव धर्म-स्थापना का उपाय पूछा। सनत कुमार ने सबको श्रद्धापूर्वक भगवान एकदन्त की उपासना करने के लिए कहा। उनकी सलाह मान कर समस्त देवगण एकदन्त की उपासना करने लगे। सौ वर्ष तक तपस्या करने के उपरांत मूषक पर भगवान एकदन्त प्रकट हुए तथा वर मांगने के लिया कहा। देवताओं ने उनसे प्रार्थना कि कि वे उन्हें मदासुर के प्रकोप से मुक्ति दिलायें। एकदंत ने उनका मनोरथ पूरा करने का आर्शिवाद दिया।
दूसरी आेर देवर्षि नारद ने मदासुर को सूचना दे दी देवताआें को निर्भय करने के लिए भगवान एकदन्त उसके प्राण हरने आ रहे हैं। घमंडी मदासुर अत्यन्त क्रोध में अपनी विशाल सेना लेकर एकदन्त से युद्ध करने चला। मार्ग में ही उसकी मुठभेड़ मूषक पर सवार भयानक आकृति वाले हाथों मे परशु, पाश आदि आयुध लिए एकदंत से हो गर्इ। उन्होंने असुरों से कहा कि यदि वह जीवित रहना चाहते हो तो देवताओं से द्वेष छोड़ दो, आैर उनका राज्य उन्हें वापस कर दो। ऐसा ना होने पर वे निश्चित ही स्वामी समेत उनका वध कर देंगे। इस पर गुस्से में आये मदासुर ने युद्ध भूमि पर एकदंत को लकलकारा आैर जैसे ही उसने अपने धनुष पर बाण चढ़ाना चाहा की भगवान एकदन्त का तीव्र परशु उसे लगा और वह बेहोश होकर गिर गया। बेहोशी टूटने पर उसेक समझ आ गया कि उनसे पार पाना संभव नहीं है। वे सर्वसमर्थ परमात्मा ही हैं, तब उसने हाथ जोड़कर स्तुति करते हुए कहा की प्रभो मुझे क्षमा कर अपनी भक्ति आैर आर्शिवाद प्रदान करें। तब एकदन्त प्रसन्न होकर आदेश दिया कि जहा उनकी पूजा हो,वहां कभी मत जाना। इसके बाद मदासुर पाताल में रहने चला गया आैर देवता भी प्रसन्न होकर एकदन्त की स्तुति करके अपने लोक चले गये।