Move to Jagran APP

गणपति के 8 अवतारों में से एक हैं वक्रतुंड जानें इनकी कहानी

श्री गणेश ने मानव जाति के कष्टों का हरण करने के लिए 8 बार अवतार लिया। उन्हीें की कहानी सुनिए पंडित दीपक पांडे से, आज जानिए वक्रतुंड अवतार के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 09:54 AM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 04:12 PM (IST)
गणपति के 8 अवतारों में से एक हैं वक्रतुंड जानें इनकी कहानी

श्री गणेश के अवतार 

loksabha election banner

पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त है। इन अवतारों की संख्या आठ बतार्इ जाती है आैर उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड,  गजानन, एकदंत, विघ्नराज, महोदर, लंबोदर, विकट, और धूम्रवर्ण। इस क्रम में आज जानिए श्रीगणेश के वक्रतुंड अवतार के बारे में।  

क्यों लिया वक्रतुंड अवतार 

शास्त्रों के अनुसार गणेश जी ने वक्रतुंड रूप में अवतार राक्षस मत्सरासुर के दमन के लिए लिया था। मत्सरासुर परम शिव भक्त था और उसने उनकी उपासना करके अभय होने का वरदान प्राप्त कर लिया। इसके पश्चात देवगुरु शुक्राचार्य के निर्देश पर उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। तब सारे देवता शिव जी की शरण में पहुंचे। जिस पर शंकर जी ने उनसे कहा कि वे गणेश जी का आह्वान करें। देवताआें द्वारा आह्वान करने पर गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर प्रकट हुए। इसी वक्रतुंड अवतार ने मत्सरासुर को उसके सहयोगियों समेत पराजित किया। बताते हैं कि  बाद में मत्सरासुर गणपति का परम भक्त हो गया था।

 

वक्रतुंड अवतार की कथा 

गणेश जी के 8 प्रमुख अवतारों में प्रथम वक्रतुंडा अवतार माना जाता है। यह अवतार ब्रह्मा को धारण करने वाला है। कथा के अनुसार यह है कि देवराज इंद्र के प्रमाद से मत्सरासुर का जन्म हुआ था। इसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की प्रेरणा और पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय के जप के फलस्वरुप शिवजी से मिले वरदान के बल के द्वारा तीनों लोगों को ही नहीं बल्कि कैलाश और बैकुंड पर भी आधिपत्य जमा लिया। इस पर देवताओं ने शिव जी की सलाह पर भगवान दत्तात्रेय से मिलकर के वक्रतुंड के एकाक्षरी मंत्र से अनुष्ठान किया। इस मंत्र के प्रभाव से पशुपतिनाथ ने वक्रतुंड को प्रकट किया और मत्सर से मुक्ति दिलाने के लिए कहा।  मत्सर के साथ उसके दो पुत्र सुंदरप्रिय और विषयप्रिय भी थे। ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे। वक्रतुंड आैर उनके भक्त तुम और मत आैर मत्सर असुर आैर उसके दोनों पुत्रों के मध्य में घमासान हुआ। अंततः उसके दोनों पुत्र मारे गए आैर मत्सर असुर वक्रतुंड जी की शरण में चला आया। उसके बाद गणेश जी ने देवताओं को निर्भय होने का आर्शिवाद प्रदान किया। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.