जूना अखाड़े में सबसे अधिक नागा संन्यासी हैं
कुंभ के आयोजन में सबसे बड़ा आकर्षण पंच दशनाम जूना अखाड़े का है। जूना अखाड़े के संन्यासी आदि गुरु शंकराचार्य की उस परंपरा की याद दिलाते हैं,
उज्जैन। कुंभ के आयोजन में सबसे बड़ा आकर्षण पंच दशनाम जूना अखाड़े का है। जूना अखाड़े के संन्यासी आदि गुरु शंकराचार्य की उस परंपरा की याद दिलाते हैं, जब उन्होंने विभिन्न पंथों में बंटे साधु समाज को संगठित किया था। तेरहवीं शती में स्थापित जूना अखाड़े में सबसे अधिक नागा संन्यासी हैं।
अखाड़े पर एक नजर
पंच दशनाम जूना अखाड़ा पहले भैरव अखाड़े के नाम से जाना जाता था। इतिहासकार प्रो.डीपी दुबे के मुताबिक जूना शब्द मराठी और गुजराती में प्रचलित था, जिसका शाब्दिक अर्थ प्राचीन से है। वाराणसी में दंगे के दौरान लाट भैरव (पिलर) को तोड़ दिया गया था।
ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने हिम्मत गिरी एवं अनूप गिरी के साथियों को बुंदेलखंड से भगा दिया था। हिम्मत गिरी अपने साथियों के साथ वाराणसी आ गए। वाराणसी में भैरव के स्थान पर अखाड़े का नाम जूना रख दिया गया। कुछ विद्वानों का मत है कि अखाड़े की स्थापना जूनागढ़ (गुजरात) में हुई थी। वर्तमान में आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी एवं मुख्य संरक्षक महंत हरि गिरी महाराज की देखरेख में अखाड़े का संचालन हो रहा है।
शस्त्र और शास्त्र की परंपरा
सनातन धर्म की रक्षा एवं प्रचार प्रसार के साथ ही अखाड़े के नागा साधुओं को शस्त्र और शास्त्र की दीक्षा प्रदान की जाती है। करीब साढ़े चार लाख नागा संन्यासी सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र चलाने में माहिर हैं। उज्जैन में रामघाट के सामने शिप्रा तट पर दत्त अखाड़ा पर जूना का मुख्यालय है। भगवान दत्तात्रेय अखाड़े के आराध्य देव हैं। दत्त अखाड़े के पुजारी आनंद पुरी महाराज ने बताया कि अखाड़े की स्थापना सैनिक छावनी की परिकल्पना के आधार पर की हुई थी। कालांतर में सनातन धर्म का प्रचार प्रसार नागा साधुओं का प्रमुख कार्य हो गया।
धर्मध्वजा हुई स्थापित
भूखी माता तिराहे पर अखाड़े की धर्मध्वजा 25 मार्च को स्थापित की गई है। पांच अप्रैल को अखाड़े की पेशवाई परंपरागत मार्ग से निकाली जाएगी। पुजारी आनंद पुरी ने बताया कि 52 हाथ की धर्मध्वजा सनातन धर्म का प्रतीक है। धर्मध्वजा के नीचे नागा साधुओं को संस्कार एवं संकल्प की दीक्षा दी जाती है। देश के अलग-अलग शहरों में अखाड़े की एक हजार से ज्यादा शाखाएं हैं। अखाड़े का मुख्य कार्य सनातन धर्म का प्रचार और दीन-दुखियों की मदद करना है।
स्थापना-1259
पंजीयन- 1860
मुख्यालय-वाराणसी
आराध्य-भगवान दत्तात्रेय
संस्थापक-आदि गुरु शंकराचार्य
आचार्य महामंडलेश्वर-स्वामी
अवधेशानंद गिरी
मुख्य संरक्षक-महंत हरि गिरी महाराज
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