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महाकाल और मंगलनाथ सहित कई मंदिरों को मूल स्वरूप में लाना था कठिन

सिंहस्थ के पहले महाकाल की नगरी को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। नए निर्माण के साथ प्राचीन मंदिरों और घाटों के संरक्षण का काम भी शामिल है। इस काम को पूरा करने में शहर के दो आर्किटेक्ट्स ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 22 Mar 2016 09:45 AM (IST)Updated: Tue, 22 Mar 2016 10:07 AM (IST)
महाकाल और मंगलनाथ सहित कई मंदिरों को मूल स्वरूप में लाना था कठिन

इंदौर। सिंहस्थ के पहले महाकाल की नगरी को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। नए निर्माण के साथ प्राचीन मंदिरों और घाटों के संरक्षण का काम भी शामिल है। इस काम को पूरा करने में शहर के दो आर्किटेक्ट्स ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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आर्किटेक्ट नितिन श्रीमाली और हेरिटेज एक्सपर्ट ऋतुराज भारती से बात कर हमने जाना कि किस तरह उन्होंने सिंहस्थ के लिए उज्जैन के घाटों से लेकर जर्जर हो चुके पुराने मंदिरों तक को पुरातन वास्तुकला और तकनीकों का उपयोग करते हुए संरक्षित किया।

भारती ने सिंहस्थ के लिए रामघाट, गंधर्व घाट, रुद्रसागर और 84 महादेव मंदिर के संरक्षण का काम किया है। जेएनएनयूआरएम के तहत एक एनजीओ को 136 करोड़ का यह प्रोजेक्ट मिला था, जिसमें वे बतौर हेरिटेज एक्सपर्ट काम कर रहे थे। भारती कहते हैं कि प्राचीन घाटों और मंदिरों को संरक्षित करते हुए सबसे चुनौतीपूर्ण काम था उन्हें अपने मूल स्वरूप में बनाए रखना। हमने जितने स्थानों पर काम किया, वह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित नहीं थे।

इसी कारण लोगों ने जाने-अनजाने में इन स्थानों को जर्जर बना दिया था। पुराने पत्थरों पर गंदगी और काई जमी थी। लोगों ने दीवारों पर पेंट कर दिया था और कई जगह पेड़ उग आए थे। इन सबसे निपटने के लिए पहले हमने सेंड डस्ट को सरफेस पर एयरप्रेशर से फेंक कर साफ किया। कई जगह कैमिकल का इस्तेमाल किया।

इसके बाद सात दिन तक गलाए गए चूने, गुड़, मेथीदाना और उड़द की दाल के पानी को अलग-अलग अनुपात में मिलाकर बनाए गए मिश्रण से जुड़ाई और प्लास्टर के साथ स्लैब डालने का काम किया। यह मकान बनाने का सबसे प्राचीन तरीका है। इस मिश्रण से जुड़ाई सैकड़ों सालों तक टिकाऊ रहती है। प्राचीन मंदिर, महल और किले इसी तकनीक से बनाए जाते थे। इसके लिए हमने प्रशिक्षित कॉन्ट्रेक्टरों और मजदूरों की मदद ली।

घाटों का संरक्षण था चुनौतीपूर्ण
वे कहते हैं सबसे मुश्किल काम था घाटों को पुराने स्वरूप में लाना। यहां पत्थरों को दोबारा चमकाना था, अतिक्रमण हटाना था और टॉयलेट व पेयजल की सुविधा देनी थी। घाटों को बिना नुकसान पहुंचाए बिजली व फोन के तार और सीवेज लाइन डालना मुश्किल काम था। हमने बिल्कुल प्राचीन वास्तुकला से डिजाइंस लेकर टॉयलेट और पेयजल के लिए स्थान तैयार किए ताकि वे घाटों का हिस्सा ही लगे।

हमने जो साइन एजेस तैयार किए उन पर भी महाकाल मंदिर की वास्तुकला की छाप साफ दिखाई देती है। घाटों पर सिंधिया की पुरानी छत्रियां थीं, जिन पर गाद और काई जमी थी। स्टोन सरफेस खराब हो चुका था। इन्हें हमने कैमिकल से साफ किया। घाटों को लाइटिंग और कलर थीम से सजाया गया।

लोगों को सिखाए संरक्षण के तरीके
भारती ने बताया कि उन्होंने न सिर्फ इन स्थानों को दोबारा मूल स्वरूप दिया, बल्कि आस-पास के लोगों को उसे संरक्षित रखने के छोटे और आसान तरीके भी समझाए। जैसे मंदिरों पर पेंट न करें। चूने पर चुना ही पोतें ताकि उसे मजबूती मिले। पानी में बैकिंग सोडा मिलाकर पत्थर की दीवारों को हर साल धो दें। इससे पत्थरों में चमक आएगी।

नए रंगरूप में आया महाकाल मंदिर परिसर
आर्किटेक्ट श्रीमाली महाकाल मंदिर समिति के लिए बतौर कंसल्टेंट काम करते हैं। उनकी देखरेख में मंदिर के नंदी हॉल (दर्शन हॉल) की सीमा पहले 100 से बढ़ाकर 500 और अब करीब 2200 लोगों के लिए कर दी गई है। वे कहते हैं मंदिर में काम करने के दौरान में अक्सर ऊपर से भगवान के दर्शन कर लिया करता था, तभी मुझे विचार आया कि क्यों न वहां मौजूद पुराने ऑफिस को हटाकर पहली मंजिल पर भी दर्शन हॉल तैयार कर दिया जाए।

देश में शायद ही कोई ऐसा मंदिर होगा जहां दो मंजिला दर्शन हॉल है। हमने मंदिर से बाहर निकलने के लिए सुसज्जित और सुरक्षित निकास के साथ ही टॉयलेट और म्यूजियम भी तैयार किया। हमने यहां रथघर तैयार किया है, जिसमें महाकाल की सवारी का श्रृंगार, मुखौटे और चांदी के दो रथ रखे गए हैं, ताकि जो लोग सिंहस्थ में आए, वे भी महाकाल की सवारी के दृश्य की कल्पना कर पाएं।

मंदिर में हमने विजिटर फेसीलिटी सेंटर भी बनाया है, जिसमें टॉयलेट और अस्पताल भी हैं। जूताघर में हमने कन्वेयर बेल्ट के जरिये निकासी के स्थान तक श्रद्धालुओं के जूते-चप्पल पहुंचाने का इंतजाम भी किया है, ताकि उन्हें घूमकर दोबारा प्रवेश स्थान तक न आना पड़े। भगवान पर चढ़ाए गए फूलों से यहां हर रोज खाद भी बनेगी। रुद्रसागर से सीवेज हटाकर हमने इसका विस्तार और सौंदर्यीकरण भी किया है।

मंगलनाथ और पट्टाभिराम मंदिर में खास काम
मंगलनाथ मंदिर परिसर का विस्तार किया गया। यहां मंगलदोष मुक्ति के लिए होने वाली विशेष भात पूजा के लिए परिसर और भात बनाने के लिए एक अलग बिल्डिंग भी बनाई, जिसमें पुजारियों के लिए किचन, बाथरूम और चेंजिंग रूम हैं। पट्टाभिराम मंदिर हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती था। लकड़ी से बने इस मंदिर को दीमक और पानी ने जर्जर कर दिया था। पहली मंजिल लगभग ढहने वाली थी।

हमने मिट्टी से बनी इसकी छत से अतिरिक्त वजन हटाकर वॉटरप्रूफ बनाया। लकड़ी के स्लैब और स्तंभों के अंदर स्टेनलेस स्टील की रॉड डालकर उन्हें दोबारा लकड़ी से ढंका। इस तरह उसके मूल रूप से छेड़छाड़ किए बगैर पूरे मंदिर को गिरने से बचा लिया। हमने उज्जैन में 12 स्मार्ट पार्किंग एरिया भी बनाए हैं, जहां एप्स, कियोस्क और रास्ते में लगे एलईडी के जरिये प्री-बुकिंग करवाई जा सकती है।


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