सभी प्रकार के मोह का त्याग करके ही संभव है ईश्वर को पाना
हमें अपना प्रत्येक कार्य इस प्रकार करना चाहिए जैसे हम सौ वर्ष तक जीवित रहेंगे परंतु ईश्वर से दैनिक प्रार्थना ऐसे करें कि जैसे कल हमारे जीवन का अंतिम दिन हो। सभी प्रकार के मोह का त्याग करके ही ईश्वर से साक्षात्कार की पात्रता अर्जित होती है।
ललित गर्ग: हम कोई भी काम आधे-अधूरे मन से करते हैं तो उसमें सफलता मिलना स्वाभाविक रूप से संदिग्ध हो जाता है। सफलता का वरण तभी संभव है जब पूरी निष्ठा के साथ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परिश्रम और पुरुषार्थ करें, किंतु हम तो हर मामले में सुविधा चाहते हैं। उसे आसानी से पाने की चेष्टा करते हैं। यहां तक कि किसी सुदूर तीर्थ पर जाने के लिए लंबी यात्रा तो करते हैं, लेकिन अपने रुतबे का उपयोग कर वहां शीघ्र से शीघ्र दर्शन करने के लिए तत्पर रहते हैं। भले ही तमाम लोग दर्शनों के लिए पहले से ही कतार में लगे हों, लेकिन कुछ लोग वीआइपी दर्शन करके लौट जाते हैं। क्या ईश्वर से मिलने का यह सही और श्रद्धा से परिपूर्ण तरीका है। जब हम ईश्वर से साक्षात्कार की स्थिति में इतने सुविधावादी हो सकते हैं तो फिर जीवन के अन्य उपक्रमों के विषय में तो क्या ही कहा जाए?
सही तरीका तो यही है कि हमें अपना प्रत्येक कार्य इस प्रकार करना चाहिए, जैसे हम सौ वर्ष तक जीवित रहेंगे, परंतु ईश्वर से दैनिक प्रार्थना ऐसे करें कि जैसे कल हमारे जीवन का अंतिम दिन हो। जब हम ईश्वर के प्रति इतने पवित्र एवं परोपकारी बनकर प्रस्तुत होंगे तभी उसके साथ जुड़ने में सक्षम हो सकेंगे। दुर्भाग्य से आजकल भगवान की आराधना का संबंध भी स्वार्थ से जुड़ गया है। जब कभी कुछ चाहिए तो भगवान के आगे हाथ फैलाकर मांग लिया। स्मरण रहे कि मांगने से भगवान देने वाला नहीं है। भगवान उन्हीं को देता है जो एकाग्रता और पवित्रता के साथ अपना कर्म करते हैं, जिनमें परोपकार की भावना होती है। जो सुपात्र होते हैं।
वास्तविकता यही है सभी प्रकार के मोह का त्याग करके ही ईश्वर से साक्षात्कार की पात्रता अर्जित होती है। इसके लिए स्वयं को एकनिष्ठ भाव से ईश्वर की भक्ति के पथ पर अग्रसर करना होता है। इसी मार्ग पर हमें उस यथार्थ की अनुभूति होती है कि ईश्वर से एकाकार होना ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि और वास्तविक समृद्धि है।