Jagannath Puri Rath Yatra 2021: कैसे शुरु हुई थी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा? जानने के लिए पढ़ें ये पौराणिक कथाएं
चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का उद्देश्य भगवान का उन भक्तों तक पहुंचना बताते हैं जो किसी कारणवश भगवान के पास नहीं पहुंच पाते हैं। आइए जानते हैं रथयात्रा की शुरूआत की पौराणिक कथाओं के बारे में।
Jagannath Puri Rath Yatra 2021: ओडिशा के पुरी में निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथ यात्रा आज विधि-विधान के साथ निकल रही है। भगवान जगन्नाथ परंपरा अनुसार आज बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार हो कर नगर भ्रमण करेंगे। रथयात्रा पुरी के जगन्नाथ धाम से निकल कर गुण्डीचा मंदिर पहुंचेगी, जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं। इसके बाद देवशयनी एकादशी के दिन पुनः अपने धाम लौटेंगे। चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का उद्देश्य भगवान का उन भक्तों तक पहुंचना बताते हैं, जो किसी कारणवश भगवान के पास नहीं पहुंच पाते हैं। इस रथयात्रा का वर्णन पद्म पुराण, नारद पुराण और स्कंद पुराण आदि धर्मग्रंथों में मिलता है। आइए जानते हैं रथयात्रा की शुरूआत की पौराणिक कथाओं के बारे में।
पहली कथा
भगवान जगन्नाथ की इस प्रसिद्ध रथ यात्रा के पीछे कई पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक है स्कंद पुराण के उत्कल खण्ड में वर्णित कथा। इसके अनुसार राजा इंद्रयुम्न ने जब भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण कर विग्रहों को मंदिर में स्थापित किया, तो उसी समय आकाशवाणी हुई कि भगवान जगन्नाथ मथुरा की यात्रा पर जाएंगे। उसी यात्रा की याद में प्रतीकात्मक रूप से हर साल भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है।
दूसरी कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण, राधा जी से मिलने वृदांवन पहुंचे, तो वृदांवन के गोप-गोपियां खुश होकर भगवान के रथ को अपने हाथ से ही खींचने लगे। भगवान के रथ को सारे नगर का भ्रमण कराया। माना जाता है कि पुरी की रथ यात्रा भगवान श्री कृष्ण के वृंदावन यात्रा की याद में निकाली जाती है। मान्यता है कि भगवान द्वारिकाधीश को सारे जग का नाथ मानते हुए वृदांवन वासियों ने ही उन्हें भगवान जगन्नाथ का नाम दिया।
तीसरी कथा
रथ यात्रा की यह कथा चारण या लोक कथा के नाम से जानी जाती है। इस कथा के अनुसार, द्वापर युग के अंत में भगवान श्री कृष्ण ने अपना देह त्याग किया। श्री कृष्ण जी के शरीर को समुद्र तट पर जालाया गया, पर तूफान आ जाने के कारण उनका आधा जला हुआ शरीर बह कर पुरी के समुद्र तट पर पहुंच गया। पुरी के राजा ने नगरवासियों की मदद से भगवान के शरीर को रथ में रखकर नगर दर्शन करवाया। शरीर के साथ बह कर आई दारू की लकड़ी से पेटी बनवाकर शरीर को भूमि को समर्पित कर दिया। इसी स्थान पर राजा ने भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनवाया। तब से इसी की याद में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है।
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