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Motivational Story: कैसे करें जरूरतमंदों की मदद? ईश्वरचंद विद्यासागर के जीवन से ले सकते हैं प्रेरणा

Motivational Story जरूरतमंदों की मदद के लिए आपको धनवान शक्तिशाली और प्रभावशाली होना जरूरी नहीं। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको समाज सुधारक ईश्वरचंद विद्यासागर के जीवन से जुड़ी हुई एक प्रेरक घटना के बारे में बता रहे हैं जिससे आप जरूरतमंदों की मदद करने की प्ररेणा ले सकते हैं।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Wed, 31 Mar 2021 10:06 AM (IST)Updated: Fri, 02 Apr 2021 05:10 PM (IST)
Motivational Story: कैसे करें जरूरतमंदों की मदद? ईश्वरचंद विद्यासागर के जीवन से ले सकते हैं प्रेरणा
Motivational Story: कैसे करें जरूरतमंदों की मदद? ईश्वरचंद विद्यासागर के जीवन से ले सकते हैं प्रेरणा

Motivational Story: जरूरतमंदों की मदद करने के लिए आपको धनवान, शक्तिशाली और प्रभावशाली होना जरूरी नहीं होता है। आप सामान्य रहकर भी जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं। कई बार हम भटके लोगों को राह दिखाकर, भूखे को भोजन कराकर, प्यासे को पानी ​पिलाकर, लोगों का मार्गदर्शन करके भी मदद कर सकते हैं। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको समाज सुधारक ईश्वरचंद विद्यासागर के जीवन से जुड़ी हुई एक प्रेरक घटना के बारे में बता रहे हैं, जिससे आप जरूरतमंदों की मदद करने की प्ररेणा ले सकते हैं।

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एक समय की बात है, जब ईश्वरचंद विद्यासागर बहुत छोटे थे। वे बचपन से ही दयालु और परोपकारी प्रवृति के व्यक्ति थे। वे दूसरों के दुख को देखकर स्वयं भी दुखी हो जाते थे। दूसरों की पीड़ा उनको अंदर तक बेचैन कर देती थी, वे सदैव लोगों की मदद करने के लिए तत्पर रहते थे।

ऐसे ही एक दिन उनके घर पर एक दरिद्र व्यक्ति आया। वह बालक ईश्वरचंद विद्यासागर से कुछ मांगने लगा। इस पर ईश्वरचंद दौड़ते हुए अपनी मां के पास गए। फिर उनसे उस दरिद्र व्यक्ति के बारे में बताया और उसकी मदद करने का आग्रह करने लगे।

बच्चे की बातों को सुनने के बाद मां ने तुरंत अपने हाथ से कंगन उतारे और बेटे ईश्वरचंद को दे दिया। फिर उन्होंने मां के कंगन उस गरीब व्यक्ति को दे दिए। मां की यह सहायता उनको बड़े होने तक याद रही। युवावस्था में उन्होंने अपनी प​हली कमाई से वे मां के लिए कंगन खरीदकर ले आए। मां को कंगन देते हुए कहा कि मां आपका ऋण उतर गया। इस पर मां ने कहा कि उनका ऋण तो उस दिन उतरेगा, जिस दिन किसी और व्यक्ति के लिए उनको अपना कंगन दोबारा न उतारना पड़े।

मां की यह बात ईश्वरचंद के दिल को छू गई। मां की इस बात से प्रेरित होकर उन्होंने अपना जीवन दीन-दुखियों की सेवा में बिताने का प्रण ले लिया। अपने इस प्रण को पूरा करने के लिए उनके जीवन में कई बाधाएं आईं, लेकिन उन्होंने हर बाधा को पार किया और अपने प्रण को पूरा किया।

कथा का सार

राह में कठिनाइयां आने के बावजूद हमें हर हाल में जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।


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