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ऊर्जा: मानव गुरु महिमा का विस्तार नहीं कर सकता, विद्या मुक्ति की साधना है और गुरु इसी विद्या की अनेक धाराओं का संगम

महान गुरु ही जीवन का सच्चा निर्माता है। वह अपने बुद्धि कौशल से शिष्य के चरित्र का निर्माण करता है। यह गुरु की महिमा ही है कि वह अपने गुरु से भी आगे बढ़कर अपने शिष्य को महान बनाता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 24 Jul 2021 03:19 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jul 2021 03:19 AM (IST)
ऊर्जा: मानव गुरु महिमा का विस्तार नहीं कर सकता, विद्या मुक्ति की साधना है और गुरु इसी विद्या की अनेक धाराओं का संगम
गुरु संसार की श्रेष्ठ पदवी है, जो अपने शिष्य को सर्वोत्तम बनाने के धर्म का निर्वहन करता है

विद्या मुक्ति की साधना है और गुरु इसी विद्या की अनेक धाराओं का संगम। यदि किसी मनुष्य ने गुरु का मंत्र ग्रहण नहीं किया तो समझिए वह पृथ्वी पर भार स्वरूप है। ऐसा मानव कभी गुरु महिमा का विस्तार नहीं कर सकता। इसीलिए मनुष्य को गुरु का अनुशासन, प्रेम और आशीष समय पर प्राप्त कर लेना चाहिए। तभी वह गुरुभक्ति और गुरुशक्ति का वाहक बनने में सक्षम हो सकेगा। जिस प्रकार भगवान ने गुरु की ओर संकेत कर उन्हें स्वयं से श्रेष्ठ बताया, उसी तरह माता-पिता भी गुरु को अपने से श्रेष्ठ मानते हैं। वास्तव में माता-पिता तो जन्म देकर पालन-पोषण करते हैं, लेकिन किसी को आदर्श मनुष्य का आकार देने वाला तो गुरु ही है।

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गुरु संसार की श्रेष्ठ पदवी है, जो अपने शिष्य को सर्वोत्तम बनाने के धर्म का निर्वहन करता है। केवल गुरु-शिष्य संबंध ही आध्यात्मिक संबंध है, क्योंकि गुरु ही ईश्वर का मार्ग दिखाता है। गुरु ही जीवन का रहस्य बताता है। गुरु ही मानव के जीवन से जुड़े लक्ष्य भेद को सिद्ध कराने में समर्थ हो सकता है। जिस भी साधक ने गुरु की महिमा को आत्मसात किया, वह भवसागर से पार हो गया। शरीर व आत्मा का तत्व दर्शन, जीव की मीमांसा, ईश्वर की खोज और संसार का आश्रय गुरु के मार्गदर्शन से ही संभव है। आत्मोद्धार के पथिक गुरु महिमा से पूर्ण सफलता पाते हैं। इसीलिए गुरु को पारंपरिक एवं मूल पथप्रदर्शक बताया गया है, जिस पर चलकर आत्मबोध की यात्रा सरल हो जाती है।

महान गुरु ही जीवन का सच्चा निर्माता है। वह अपने बुद्धि कौशल से शिष्य के चरित्र का निर्माण करता है। यह गुरु की महिमा ही है कि वह अपने गुरु से भी आगे बढ़कर अपने शिष्य को महान बनाता है। भगवान श्रीराम के लिए गुरु वशिष्ठ, पांडवों के लिए गुरु द्रोण और चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त के लिए आचार्य चाणक्य जैसे गुरु ही उनकी समग्र सफलता के स्रोत थे। विद्या दान की गुरु कृपा ही अपने शिष्यों का महिमामंडन करने का माध्यम सिद्ध होती है।

- डाॅ. राघवेंद्र शुक्ल


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