जीवन की धन्यता: जीवन की धन्यता में ही छिपा हुआ है सुखी जीवन का सार
किसी सुखद कार्य के संपन्न होने पर या किसी के शुभ आगमन पर हमारा मन एकाएक बोल उठता है कि-हम धन्य हुए। अर्थात व्यक्ति को स्वयं के भाग्यशाली होने की अनुभूति होती है। जीवन की धन्यता में ही सुखी जीवन का सार छिपा हुआ है।
किसी सुखद कार्य के संपन्न होने पर या किसी के शुभ आगमन पर हमारा मन एकाएक बोल उठता है कि-हम धन्य हुए। अर्थात व्यक्ति को स्वयं के भाग्यशाली होने की अनुभूति होती है। जीवन की धन्यता में ही सुखी जीवन का सार छिपा हुआ है। वस्तुत: इस भावना से साक्षात्कार के लिए गहन चिंतन-मनन कर आत्मविश्लेषण बहुत आवश्यक है, जो यह बताता है कि किन बातों में हम सुख की अनुभूति कर स्वयं को धन्य मानते हैं। ऐसे चिंतन-मनन के लिए मन का एकाग्र होना अत्यावश्यक है। जीवन की भागदौड़ में यह बहुत दुष्कर हो गया है।
हम अपनी आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार और ज्ञान तभी दे पाएंगे जब हम स्वयं अवसाद, प्रमाद और विकृतियों से मुक्त रह सकें। जीवन की धन्यता का एक महत्वपूर्ण अवयव यही है कि हमने जितना पाया उससे अधिक बांटा हो। दाता बनने की भावना हमे ईश्वर के अधिक निकट लाती है। इससे हमारा जीवन सार्थक और अंतत: धन्य हो जाता है।
जीवन है तो विकार और अवरोध भी बहुत हैं। ऐसे में उनसे पार पाने का एक ही मंत्र है कि अपनी आवश्यकताओं और क्षमताओं का सही आकलन किया जाए। यही आकलन मन को साधने का माध्यम बनता है। संतुलित और शांत मन वास्तव में सुख का संकेतक होता है।
गौण इच्छाओं पर कुछ नियंत्रण लगाते हुए और उत्तम संस्कारों को आत्मसात करने में ही आदर्श जीवन प्रबंधन संभव है। रूढ़ियों से परे हटकर, किसी सिद्धांत पर चलकर, किसी आदर्श के प्रति आस्था रखकर अपनी जीवनशैली को ढाल लेना ही धन्यता है। परिपूर्णता है। अन्यथा जीवन में बहुत भटकाव है।
परिजनों की निकटता, प्रकृति का सान्निध्य तथा सकारात्मक रुचियों को गढ़ने में ही धन्य हो जाने का अंतरबोध हो जाता है। तब जीवनयापन किसी तीर्थयात्र से कम नहीं प्रतीत होता। यही नहीं दूसरों के आनंद में स्वयं को समाहित कर पाना जीवन की धन्यता का अति उत्तम उदाहरण है।