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Dahi Handi 2020: बाल कृष्ण की लीलाओं को समर्पित है दही हांडी, जानें क्या है महत्व और इतिहास

Dahi Handi 2020 कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व कान्हा की बाल लीलाओं पर समर्पित है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 12:00 PM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 01:55 PM (IST)
Dahi Handi 2020: बाल कृष्ण की लीलाओं को समर्पित है दही हांडी, जानें क्या है महत्व और इतिहास
Dahi Handi 2020: बाल कृष्ण की लीलाओं को समर्पित है दही हांडी, जानें क्या है महत्व और इतिहास

Dahi Handi 2020: कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व कान्हा की बाल लीलाओं पर समर्पित है। जहां जन्माष्टमी का पर्व कृष्ण के जन्म के उपलध्य में मनाया जाता है। वहीं, दही हांडी कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकी दिखाने वाला त्योहार है। इस दिन गोविंदाओं की टोली एक मानव पिरामिड बनाते हैं और ऊंचे स्थान पर लटकी दही और माखन से भरी हांडी को तोड़ते हैं। तो चलिए जानते हैं दही हांडी का महत्व और इतिहास।

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दही हांडी का महत्व:

बचपन में भगवान कृष्ण काफी शरारती थे और उन्हें मक्खन और दही खाने का भी बहुत शौक था। ये शौक इतना ज्यादा था जैसे-जैसे वो बड़े होने लगे वो दही और माखन चुराकर खाने लगे। ऊंचीं-ऊंची जगहों पर दही-माखन की हांडी लटकाए जाने के बाद भी कृष्ण जी अपने दोस्तों के साथ मिलकर मानव पिरामिड बनाते थे और दही-माखन चुराकर अपने दोस्तों के साथ मिलकर खाते थे। इसी के कारण इन्हें माखनचोर कहा जाने लगा था।

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इस तरह हुई दही हांडी की शुरुआत:

भगवान कृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ था। इनकी माता देवकी और पिता वासुदेव ने इन्हें कंस से बचाने के लिए गोकुल में यशोदा और नंद के यहां पहुंचा दिया था। ये देवकी की आठवीं संतान थीं। आकाशवाणी हुई थीं कि देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मृत्यु का कारण होगा। इस भविष्यवाणी के बाद कंस ने देवकी और वासुदेव की हर संतान को एक-एक कर मार दिया था। लेकिन जब देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान यानी श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो वासुदेव ने उसे गोकुल में यशोदा और नंद के यहां पहुंचा दिया था। ऐसे में गोकुल में ही बाल कृष्ण की लीलाओं की शुरुआत हुई।

जैसे कि हम सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण को दही-माखन कितना पसंद था। ऐसे में वो अक्सर गोपियों की मटकियों से माखन चुराकर खाया करते थे। उनका मां यानी यशोदा उनकी आदतों से तंग आ चुकी थीं जिसके चलते वो और अन्य महिलाएं दही-माखन को सुरक्षित रखने के लिए इन्हें किसी ऊंचे स्थान पर लटका देती थीं। वहीं, श्रीकृष्ण अपने दोस्तों को साथ मिलकर मानव पिरामिड बनाते थे जिससे वो हांडियों तक पहुंच पाएं। फिर माखन चुराकर वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर खाते थे। इसी के बाद ही इनका नाम माखनचोर पड़ा था। ऐसे में यह कहा जाता है कि दही हांडी का पर्व कृष्ण की लीलाओं को समर्पित है। आजकल मानव पिरामिड बनाने वालों को गोविंदा कहा जाता है।


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