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Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से आरंभ हो रही है नवरात्रि ऐसे पूजन करने से मिलेगा सर्वोत्तम लाभ

इस 6 अप्रैल से नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। इस अवधि में श्रध्दा पूर्वक देवी की विधि विधान से पूजा करने से माता् प्रसन्न हो कर सुख समृध्दि का वरदान देती हैं।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 03:55 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 04:01 PM (IST)
Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से आरंभ हो रही है नवरात्रि ऐसे पूजन करने से मिलेगा सर्वोत्तम लाभ
Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से आरंभ हो रही है नवरात्रि ऐसे पूजन करने से मिलेगा सर्वोत्तम लाभ

पूजा के लिए है उत्तम समय

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अनुष्ठान और साधना के लिए चैत्र नवरात्रि श्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है। शरद ऋतु के समान वसंत ऋतु में भी शक्ति स्वरूपा दुर्गा की पूजा की जाती है। इसी कारण इसे वासंतीय नवरात्रि भी कहते हैं। दुर्गा गायत्री का ही एक नाम है। अत: इस नवरात्रि में विभिन्न पूजन पद्धतियों के साथ-साथ गायत्री का लघु अनुष्ठान भी विशिष्ट फलदायक होता है। चैत्र शब्द से चंद्र तिथि का बोध होता है। सूर्य के मीन राशि में जाने से, चैत्र मास में शुक्ल सप्तमी से दशमी तक शक्ति आराधना का विधान है। चंद्र तिथि के अनुसार, मीन और मेष इन दो राशियों में सूर्य के आने पर अर्थात चैत्र और वैशाख इन दोनों मासों के मध्य चंद्र चैत्र शुक्ल सप्तमी में भी पूजन का विधान माना जाता है। यह काल किसी भी अनुष्ठान के लिए सर्वोत्तम कहा गया है। माना जाता है कि इन दिनों की जाने वाली साधना अवश्य ही फलीभूत होती है।

कब और कैसे करें पूजन

इस नवरात्रि की पूजा प्रतिपदा से आरंभ होती है परंतु यदि कोई साधक प्रतिपदा से पूजन न कर सके तो वह सप्तमी से भी आरंभ कर सकता है। इसमें भी संभव न हो सके, तो अष्टमी तिथि से आरंभ कर सकता है। यह भी संभव न हो सके तो नवमी तिथि में एक दिन का पूजन अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, वासंतीय नवरात्रि में बोधन नहीं किया जाता है, क्योंकि वसंत काल में माता भगवती सदा जाग्रत रहती हैं। नवरात्रि में उपवास एवं साधना का विशिष्ट महत्व है। भक्त प्रतिपदा से नवमी तक जल उपवास या दुग्ध उपवास से गायत्री अनुष्ठान संपन्न कर सकते हैं। यदि साधक में ऐसा साम‌र्थ्य न हो, तो नौ दिन तक अस्वाद भोजन या फलाहार करना चाहिए। किसी कारण से ऐसी व्यवस्था न बन सके तो सप्तमी-अष्टमी या केवल नवमी के दिन उपवास कर लेना चाहिए। अपने समय, परिस्थिति एवं साम‌र्थ्य के अनुरूप ही उपवास आदि करना चाहिए।

गायत्री मंत्र का होता है महत्‍व

इस अवधि में गायत्री मंत्र का जाप अनुष्ठान के दौरान जरूर करना चाहिए। इन दिनों दुर्गासप्तशती का पाठ करना भी अच्छा माना जाता है। देवी भागवत में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। आत्मशुद्धि और देव पूजन के बाद गायत्री जप आरंभ करना चाहिए। सूर्या‌र्घ्य आदि अन्य सारी प्रक्रियाएं उसी प्रकार चलानी चाहिए, जैसे दैनिक साधना में चलती हैं। अनुष्ठान के दौरान यह कोशिश करनी चाहिए कि पूरे नौ दिन जप संख्या नियत ढंग से पूरी करनी की जाए। ध्यान रखना चाहिए कि उसमें व्यवधान ना आ सके या कम से कम पड़े। इस वर्ष ये अवधि 6 अप्रैल से आरंभ हो कर 14 अप्रैल होगी।  

करें कुमारी पूजन

कुमारी पूजन नवरात्रि अनुष्ठान का प्राण माना गया है। कुमारिकाएं मां की प्रत्यक्ष विग्रह हैं। प्रतिपदा से नवमी तक विभिन्न अवस्था की कुमारियों को माता भगवती का स्वरूप मानकर वृद्धिक्रम संख्या से भोजन कराना चाहिए। वस्त्रालंकार, गंध-पुष्प से उनकी पूजा करके, उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन कराना चाहिए। दो वर्ष की अवस्था से दस वर्ष तक की अवस्था वाली कुमारिकाएं स्मार्त रीति से पूजन योग्य मानी गई हैं। भगवान व्यास ने राजा जनमेजय से कहा था कि कलियुग में नवदुर्गा का पूजन श्रेष्ठ और सर्वसिद्धिदायक है। 

नियमों का पालन जरूरी

तप-साधना एवं अनुष्ठान तभी पूरे होते हैं, जब उसमें उपासना के साथ साधना और आराधना कठोर अनुशासन से की जाए। नवरात्रि के अंतिम दिन पूर्णाहुति के रूप में हवन अवश्य करना चाहिए। हवन की प्रत्येक आहुति के साथ मन में यह भावना लानी चाहिए कि वैयक्तिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय आपदाएं इस की अग्नि में ध्वस्त हो जायेंगी। माता गायत्री की कृपा से सभी का भला होगा और इच्छायें पूरी होंगी। इस प्रकार विधि विधान से चैत्र नवरात्रि की पूजा करने से जीवन के अनेक कष्ट दूर हो सकते हैं ऐसा माना जाता है। 


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