कुछ ऐसे हैं अमरनाथ यात्रा के अनुभव, जो पहुंचे एक बार, फिर जाना चाहे हर बार
सावन का महीना चल रहा है और भोले भंडारी की भक्ति में शिवभक्त लीन हैं। कोरोना के चलते इस बार भक्ति भक्त सब प्रभावित हुए हैं।
सावन का महीना चल रहा है और भोले भंडारी की भक्ति में शिवभक्त लीन हैं। कोरोना के चलते इस बार भक्ति, भक्त सब प्रभावित हुए हैं। अमरनाथ यात्रा देर से शुरू होने की संभावना है। शिव भक्तों को इंतजार है कि वो सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए बाबा बर्फानी के दर्शन करें। हालांकि, इस बार काफी सख्त एहतियात प्रशासन की ओर से रहेंगे। रोजाना दर्शन करने वालों की संख्या भी सीमित रहेगी साथ ही धूप बत्ती की इजाजत भी नहीं दी जाएगी। कमोबेश कुछ इसी तरह की गाइडलाइन जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से तैयार की जा रही है।
बाबा बर्फानी, अमरेश्वर, अमरनाथ.. कई नाम हैं इस धाम के। मान्यता है कि ये मोक्ष का रास्ता है। कुछ इसे स्वर्ग प्राप्ति का रास्ता कह कर दर्शन को आतुर रहते हैं। भक्तों की गजब की आस्था ही उन्हें समुद्र तल से 13 हजार 500 फीट की उंचाई तक ले जाती है। कहा गया है मन चंगा तो कठौती में गंगा। जो लोग कोविड-19 के कारण अमरनाथ नहीं जा पा रहे हैं, वो ऊपर लिखी सूक्ति को ही मन में धारें और बाबा बर्फानी के दर्शन घर बैठे करें।
हर साल पहलगाम से अमरनाथ यात्रा शुरू होती है। यात्रा दशनामी अखाड़े के छड़ी मुबारक रिवायत के साथ रवाना होती है। अमरनाथ यात्रा के लिए श्रीनगर से 140 किलोमीटर और जम्मू से 326 किलोमीटर का सफर तय करना होता है। पहले अमरनाथ यात्रा कर चुके कुछ भक्तों से हमने बात की, तो उनका कहना है वहां अद्भुत अनुभव होता है।
हैदराबाद रहने वाले राजेश वालिया कहते हैं कि उन्होंने तीन बार अमरनाथ यात्रा की है। छोटा बच्चा होने के कारण कई साल से नहीं जा पा रहे है। वो अनुभव शानदार होता है। डिवोशनल आनंद मिलता है। टूरिज्म के हिसाब से वो बेमिसाल जगह है। चारों और बर्फ ही बर्फ है, उसका बयान कैसे करें। प्रकृति को एकदम पास से देखने का मौका मिलता है। एक तीसरी वो अनुभूति होती है जिसकी इंसान तलाश करता है। वहां के गर्भगृह में मैडिटेशन करना अपने आप में विरला अनुभव है। साथ ही अपने स्वास्थ्य की जांच हो जाती है। वहां पूरे रास्ते पैदल चलना पड़ता है। वहां स्वस्थ्य व्यक्ति ही यात्रा कर पाता है। इन्हीं सब का संगम है, अमरनाथ मंदिर। वहां के भंडारे भी अद्भुत होते हैं। हर तरह का वैरायटी और क्वालिटी फूट भक्तों के लिए निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।
लुधियाना रहने वाली आशा मेहता हर साल बाबा अमरनाथ के मंदिर जाती है। अब तक 12 बार गईं हैं। आशा नंगे पैर इस यात्रा को करती हैं। वो पहलगांव से मंदिर तक और फिर दर्शन के बाद बालटाल तक नंगे पैर आती है। आशा मेहता का कहना है कि आस्था और प्रकृति दोनों ही अलग अनुभव देते हैं। शब्दों में बयां नहीं किए जा सकते। जो जाएगा, वो ही इस अनुभव को पाएगा। आशा मेहता का कहना है कि अगर इस बार भी यात्रा हुई तो वो पूरी कोशिश में हैं कि वो बाबा बर्फानी के दर्शन करें।