नवरात्रि 2018: कलश स्थापना के बाद करें मां के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा
नवरात्र में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा होती है जिसमें से पहले दिन उनके शैलपुत्री रूप का पूजन कैसे करें आैर उसका क्या महत्व है ये जानें पंडित दीपक पांडे से।
कौन हैं माता शैलपुत्री
मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को पर्वतराज हिमालय की पुत्री कहा जाता है। इनका वाहन वृषभ होता है, इसी कारण इनको वृषारूढ़ा और उमा के नाम के भी जाना जाता है। माता शक्ति ने सबसे पहले शैलपुत्री के रूप में ही पुर्नजन्म लिया था इसीलिए देवी के पहले स्वरूप के तौर पर माता शैलपुत्री की पूजा होती है। इनकी उत्पत्ति शैल से हुई है। उन्होंने दाएं हाथ में त्रिशूल आैर बाएं हाथ में कमल धारण कर रखा है। देवी के इस स्वरूप को सती के रूप में भी पूजा जाता है।
शैलपुत्री की पूजा
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। देवी को सफेद रंग अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उनके पूजन में सफेद वस्त्र और सफेद फूल ही अर्पित करें और सफेद बर्फी का भोग लगाएं। वैसे देवी को गुड़हल आैर केवड़े के पुष्प भी अत्यंत प्रिय हैं। इसके बाद कपूर से आरती करें आैर इस मंत्र का जाप करें ‘वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥’ मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा में नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आवाहन करने से शुभ फल प्राप्त होता है।
शैलपुत्री की पूजा का महत्व
शास्त्रों के अनुसार शैलपुत्री की पूजा से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही मति भ्रम या अनिर्णय से हट कर निर्णय लेने का साहस प्राप्त होता है। मां की पूजा करने से राजकीय कृपा, धन सम्पत्ति आैश्र आभूषण आदि की भी प्राप्ति होती हैं। शैलपुत्री की साधना करने वालों को विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती है जिनमें रक्त, गर्भाशय, नेत्र, आहार नली, उदर, कफ, हैजा, मिर्गी आैर सर्दी से संबंधित रोग सम्मिलित हैं।