Kalashtami 2022: कब है वर्ष की पहली कालाष्टमी, जानें-भैरव देव की पूजा का मुहूर्त, विधि एवं महत्व
Kalashtami 2022 इस दिन मठों में विशेष पूजा कर काल भैरव देव का आह्वान किया जाता है। खासकर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-आराधना की जाती है। साथ ही महा भष्म आरती की जाती है। साधक अपने घरों में ही उनकी पूजा करते हैं।
Kalashtami 2020: 25 जनवरी को कालाष्टमी है। इस दिन भगवान शिव जी के काल स्वरूप भैरव देव और आदि शक्ति की पूजा-उपासना की जाती है। इस पर्व को अघोरी समाज के लोग धूमधाम से मनाता है। तंत्र मंत्र सीखने वाले तांत्रिक कालाष्टमी की रात को सिद्धि पूर्ण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि तांत्रिक साधक जादू-टोने की सिद्धि कालाष्टमी की रात्रि में ही करते हैं। इस दिन कालाष्टमी का व्रत विधि पूर्वक करने से व्रती के जीवन से दुःख, दरिद्र, काल और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, कालाष्टमी की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि जानते हैं-
कालाष्टमी शुभ मुहूर्त
हिंदी पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी की तिथि 25 जनवरी को सुबह में 07 बजकर 48 मिनट पर शुरु होकर 26 जनवरी, बुधवार को सुबह में 06 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी। अत: कालाष्टमी का व्रत 25 जनवरी को रखा जाएगा। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, काल भैरव देव की पूजा और उपासना रात्रि में की जाती है। हालांकि, यह मुहूर्त तांत्रिक साधकों पर लागू होता है। जबकि काल भैरव देव के उपासकों के लिए शुभ मुहूर्त दिन भर है। अगर आप किसी विशेष प्रयोजन से काल भैरव देव की पूजा करना चाहते हैं तो रात में 9 बजकर 11 मिनट से लेकर रात के 10 बजकर 55 मिनट के बीच पूजा करें। आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होगी।
कालाष्टमी महत्व
इस दिन शिवालय और मठों में विशेष पूजा कर काल भैरव देव का आह्वान किया जाता है। खासकर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-आराधना की जाती है। साथ ही महा भष्म आरती की जाती है। वहीं, शिव के उपासक और साधक अपने घरों में ही उनकी पूजा कर उनसे यश, कीर्ति, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।
कालाष्टमी पूजा विधि
इस दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई कर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। इसके बाद अंजलि में पवित्र जल रख आमचन कर अपने आप को पवित्र करें। अब सर्वप्रथम सूर्य देव का जलाभिषेक करें। इसके पश्चात भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें। अंत में आरती अर्चना कर अपनी मनोकामनाएं प्रभु से जरूर कहें। व्रती इच्छानुसार, दिन में उपवास रख सकते हैं। शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार करें। इसके अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ के बाद व्रत खोलें।
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'