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Vivah Panchami 2021: कल है विवाह पंचमी, जानें-क्यों यह दिन है बेहद खास

Vivah Panchami 2021 सनातन धर्म में विवाह पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन मंदिर-मठों को सजाया जाता है। अयोध्या और जनकपुर में विशेष आयोजन किया जाता है। कई स्थलों पर सीता स्वंयवर और राम विवाह का नाट्य रूपांतरण किया जाता है।

By Umanath SinghEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 11:24 AM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 06:00 AM (IST)
Vivah Panchami 2021: कल है विवाह पंचमी, जानें-क्यों यह दिन है बेहद खास
Vivah Panchami 2021: कल है विवाह पंचमी, जानें-क्यों यह दिन है बेहद खास

Vivah Panchami 2021: हिंदी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पंचमी मनाई जाती है। इस प्रकार 8 दिसंबर को विवाह पंचमी है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सीता स्वंयवर और मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम का विवाह हुआ था। अतः हर वर्ष मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को शादी सालगिरह मनाया जाता है। अतः विवाह पंचमी का विशेष महत्व है। इस उपलक्ष्य पर समस्त भारतवर्ष में उत्स्व मनाया जाता है। साथ ही घरों में भगवान श्रीराम और माता सीता की पूजा-उपासना की जाती है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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विवाह पंचमी का महत्व

सनातन धर्म में विवाह पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन मंदिर-मठों को सजाया जाता है। अयोध्या और जनकपुर में विशेष आयोजन किया जाता है। कई स्थलों पर सीता स्वंयवर और राम विवाह का नाट्य रूपांतरण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि विवाह-पंचमी के दिन सच्ची श्रद्धाभाव से माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा उपासना करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विवाहितों के सौभाग्य में वृद्धि होती है। वहीं, अविवाहितों को मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।

विवाह पंचमी शुभ मुहूर्त

विवाह पचंमी 07 दिसंबर, 2021 को रात 11 बजकर 40 मिनट से प्रारंभ होकर 08 दिसंबर, 2021 को रात 09 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी। अतः साधक 8 दिसंबर को दिनभर भगवान श्रीराम और माता सीता की पूजा-आराधना कर सकते हैं।

पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म बेला में उठें और नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब आमचन कर अपने आप को शुद्ध करें। तत्पश्चात, स्वच्छ वस्त्र धारण कर सर्वप्रथम भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। फिर एक चौकी पर राम जानकी की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित कर फल, फूल, धूप, दीप, दूर्वा आदि से पूजा -वंदना करें। साधक रामचरितमानस या रामायण का पाठ कर सकते हैं। अंत में आरती अर्चना कर पूजा संपन्न करें।

डिस्क्लेमर

''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''


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