Move to Jagran APP

Utpanna Ekadashi 2020: 11 दिसंबर को है उत्पन्ना एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Utpanna Ekadashi 2020 हिन्दू धर्म में उत्पन्ना एकादशी व्रत कहा महत्व बहुत ज्यादा माना गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 11 दिसंबर को पड़ रही है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Tue, 08 Dec 2020 08:00 AM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 08:00 AM (IST)
Utpanna Ekadashi 2020: 11 दिसंबर को है उत्पन्ना एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा
Utpanna Ekadashi 2020: 11 दिसंबर को है उत्पन्ना एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Utpanna Ekadashi 2020: हिन्दू धर्म में उत्पन्ना एकादशी व्रत कहा महत्व बहुत ज्यादा माना गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 11 दिसंबर को पड़ रही है। मान्यता है कि जो व्यक्ति यह व्रत करता है उस पर विष्णु जी की कृपा बनी रहती है। आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और कथा।

loksabha election banner

उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त:

सुबह का पूजा मुहूर्त: 11 दिसंबर, शुक्रवार सुबह 5 बजकर 15 मिनट से सुबह 6 बजकर 5 मिनट तक

संध्या का पूजा मुहूर्त: 11 दिसंबर, शुक्रवार शाम 5 बजकर 43 मिनट से शाम 7 बजकर 3 मिनट तक

पारण का समय: 12 दिसंबर, शनिवार सुबह 6 बजकर 58 मिनट से सुबह 7 बजकर 2 मिनट तक

उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि:

उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह उठ जाएं। सभी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर फिर व्रत का संकल्प लें। फिर धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री लें और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें। रात को दीपदान अवश्य करना चाहिए। इस एकादशी की रात भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करना चाहिए। जब व्रत का समापन हो जाए तब श्री हरि विष्णु से व्रत में हुई गलती की क्षमा याचना करें। फिर अगले दिन सुबह द्वादशी तिथि पर दोबारा श्रीकृष्ण की पूजा करें और ब्राह्मण को भोजन कराएं। अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मण को दान भी दें।

उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा:

मान्यता है कि एकादशी माता के जन्म की कथा स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। कथा कुछ उस प्रकार है- सतयुग के समय एक राक्षस था जिसका नाम मुर था। वह इतना शक्तिशाली था कि उसने अपनी सक्ति से स्वर्ग पर विजय हासिल की थी। ऐसे में इंद्रदेव ने विष्णुजी से मदद मांगी। विष्णुजी का मुर दैत्य के साथ युद्ध शुरू हुआ। यह युद्ध कई वर्षों तक चला। लेकिन अंत में विष्णु जी को नींद आने लगी तो वे बद्रिकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में विश्राम करने चले गए। 

विष्णु जी के पीछे-पीछे मुर भी पहुंचा। जैसे ही वो विष्णु जी को मारने के लिए आगे बढ़ा तो अंदर से एक कन्या निकली जिसमें मुर से युद्ध किया। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ और उस कन्या ने मुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद विष्णु जी की नींद टूटी और वो अचंभित रह गए। विष्णु जी को कन्या से विस्तार से पूरी घटना बताई। सब जानने के बाद विष्णु ने कन्या को वरदान मांगने को कहा।

कन्या ने विष्णु जी से वरदान मांगा कि अगर कोई व्यक्ति मेरा व्रत करेगा तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। साथ ही उस व्यक्ति को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। विष्णु भगवान ने उस कन्या को एकादशी का नाम दिया। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.