अाज है संतान के लिए जाने वाला बहुला चौथ का पर्व एेसे करें पूजा
आज 30 अगस्त 2018 को बहुला चौथ का पर्व मनाया जा रहा है। पंडित दीपक पांडे बता रहे हैं इस व्रत का महत्व, कथा आैर पूजा विधि।
संतान के लिए किया जाने वाला व्रत
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चौथ या बहुरा चौथ के नाम से जाना जाता है। ये पर्व इस वर्ष अगस्त 2018 की 30 तारीख को है। यह पर्व गौ पूजा का उत्सव होता है और इस व्रत को संतानवती स्त्रियां विधि विधान के साथ करती हैं। यह संतानदायी आैर उस की रक्षा करने व्रत वाला है। इस दिन गाय के दूध अथवा उससे बनने वाली किसी भी वस्तु का सेवन नहीं किया जाता है संपूर्ण दिन उपवास करके सायं काल में गाय और बछड़े की पूजा करनी चाहिए और उसे भोग लगाना चाहिए अंत में बहुला चौथ की कथा सुननी चाहिए।
पूजा सामग्री एवम् विधि
इस दिन पूजा करने के लिए गणेश जी की प्रतिमा, धूप, दीप, नैवेद्य जिसमेे मोदक तथा अन्य ऋतुफल शामिल हों, अक्षत, फूल, कलश, चंदन, केसरिया, रोली, कपूर, दुर्वा, पंचमेवा, गंगाजल, वस्त्र, कलश और गणेश जी के लिये, अक्षत, घी, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, गुड़, पंचामृत (कच्चा दूध, दही, शहद, शक्कर, घी) आदि की आवश्यकता होती है। इस दिन प्रात:काल उठकर स्नान कर, शुद्ध हो जायें आैर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार यानि धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, फूल से करें। अब हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन में श्री गणेश का ध्यान करते हुये इस मंत्र के द्वारा व्रत का संकल्प करें, "मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये"। उसके बाद कलश में गंगा जल मिला जल लेकर उसमें दूर्वा, सिक्के, साबुत हल्दी रखें। इसका मुंह लाल कपड़े से बांध दें। कलश पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। अब विधि-विधान से गणेश जी का पूजन करें। वस्त्र, नैवेद्य के रूप में मोदक अर्पित करें। शाम को गणेश चतुर्थी आैर बहुला चौथ की कथा सुने या सुनाये, आैर आरती करें। गाय आैर बछड़े की साथ में पूजा करें, इसके लिए उन पर रोली, अक्षत आैर जल अर्पित करें आैर आटे की की लोर्इ खिलायें। चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें। इसके बाद ही भोजन ग्रहण करें।
बहुला चौथ की व्रत कथा
बहुला चतुर्थी व्रत की कथा इस प्रकार है। जब भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु गाय भी कृष्ण के साथ रहने के विचार से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई। भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार उनके मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया, आैर जब बहुला वन में चर रही थी तब वे सिंह रूप में प्रकट हो गए। सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके बोली कि हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी। इस पर सिंह ने कहा कि मैं तुम्हें कैसे जाने दूं, यदि तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई। बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई, इसलिए अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा। तभी से बहुला चौथ की परंपरा शुरू हुर्इ।