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Skanda Sashti 2019: 10 फरवरी को पंचमी के साथ मिल कर बन रहा है अदभुद संयोग जाने कैसे करें पूजा

जिस दिन पंचमी तिथि के साथ षष्ठी पड़ती है उस दिन स्कन्द षष्ठी का व्रत करना अत्यंत शुभ होता है। इस बार बसंत पंचमी के साथ बन रहा सर्वोत्म योग।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 06 Feb 2019 09:30 AM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 03:36 PM (IST)
Skanda Sashti 2019: 10 फरवरी को पंचमी के साथ मिल कर बन रहा है अदभुद संयोग जाने कैसे करें पूजा

क्या है स्कंद षष्ठी

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इस बार बसंत पंचमी के दिन यानि रविवार 10 फरवरी को स्कंद षष्ठी का पर्व पड़ रहा है। तमिल हिन्दुओं के प्रसिद्ध देवता हैं स्कन्द। ये भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और गणेश जी के छोटे भाई हैं। इनके अन्य नाम मुरुगन, कार्तिकेय और सुब्रहमन्य भी हैं। प्रत्येक मास में दो षष्ठी होती हैं पर परंतु साल में तीन बार इनका सर्वाधिक महत्व होता है। पहला चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को 'स्कन्द षष्ठी' कहा है, फिर कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि, आैर आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को, परंतु इस बार इस तिथि का महत्व माघ मास में भी अत्यंत शुभ हो गया है। इसकी वजह है इसका बसंत पंचमी के साथ इसका संयोग। इसे 'संतान षष्ठी' के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान से जुड़ी पीड़ाओं को दूर करने वाले इस व्रत का विधान बताया गया है। इस तिथि पर एक दिन उपवास करके कुमार कार्तिकेय की पूजा की जाती है। यह तिथि भगवान स्कन्द को समर्पित हैं। स्कन्द षष्ठी को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

शिव पुत्र कार्तिकेय की पूजा

'स्कन्द षष्ठी' के व्रत में शिव पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय का पूजन किया जाता है। कहते हैं कार्तिकेय के पूजन से रोग, राग, दुःख और दरिद्रता का निवारण होता है। स्कन्द षष्ठी पूजा की परम्परा काफी प्राचीन है। इन कथाआें के  अनुसार भगवान शिव के तेज से उत्पन्न छह मुख वाले बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा कर रक्षा की थी, इसीलिए कार्तिकेय' नाम से पुकारा जाने लगा। पुराण व उपनिषद में इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है।

एेसे  करें पूजा

इस दिन पूजा करने के लिए सवर्प्रथम ये सामग्री एकत्रित करें। भगवान शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय का चित्र, तुलसी का पौधा एक गमले में लगा हुआ, तांबे का लोटा, नारियल, कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, कलावा आैर आसन आदि। कहते हैं कि यह व्रत विधिपूर्वक करने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही व्रत करने वालों की संतान को सभी प्रकार के कष्ट आैर रोग से बचाता है। स्कंद षष्ठी के अवसर पर शिव-पार्वती की भी पूजा होती है। इसके बाद इसमें स्कंद देव अर्थात कार्तिकेय की स्थापना करें, आैर अखंड दीपक जलायें। स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करें। अंत में फल मिष्ठान का भोग लगायें। इस दिन कुछ भक्त तंत्र साधना भी करते हैं।

स्कंद षष्ठी का महातम्य

इस दिन पूजे जाने वाले भगवान स्कंद शक्ति के देव हैं, देवताओं ने इन्हें अपना सेनापती बनाया था। मयूर की सवारी करने वाले कुमार कार्तिक की पूजा मुख्य रूप से दक्षिण भारत मे होती है। दक्षिण में  यह 'मुरुगन' नाम से प्रसिद्घ हैं। स्कन्दपुराण के मूल में कुमार कार्तिकेय ही हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सबसे बड़ा माना जाता है। स्कंद भगवान हिंदू धर्म के प्रमुख देवों मे से एक हैं। स्कंद को कार्तिकेय और मुरुगन नामों से भी पुकारा जाता है। दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र है। कार्तिकेय भगवान के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं, इसीलिए इनकी पूजा रूप से भारत के तमिलनाडु में विशेष तौर पर होती है। भगवान स्कंद का सबसे प्रसिद्ध मंदिर भी तमिलनाडु में ही है।


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