Shri Janki Stuti: श्री जानकी स्तुति का पाठ करने से खुशहाल जीवन का आशीर्वाद होता है प्राप्त
Shri Janki Stuti जानकी जयंती को देवी सीता के जन्मोत्सव के रूप में जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह दिन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तो मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व की मान्यता अधिक है।
Shri Janki Stuti: जानकी जयंती को देवी सीता के जन्मोत्सव के रूप में जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह दिन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तो मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व की मान्यता अधिक है। इसे शुभ त्यौहारों में से एक कहा जाता है। इस दिन, भक्त देवी सीता की प्रार्थना करते हैं। माना जाता है कि वे माता सीता से सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन व्रत करने से विवाहित जीवन में आने वाली सभी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। जानकी जयंती को सीता अष्टमी और सीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से यह त्योहार गुजरात, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में मनाया जाता है।
मान्यता है कि इस दिन पूजा व व्रत करने से व्यक्ति के जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह भी कहा जाता है कि जो भक्त जानकी जयंती की पूजा करते हैं वे सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। अगर इस दिन व्रत किया जाए तो व्यक्ति को खुशहाल जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता सीता की पूजा करते समय भक्त को उनकी स्तुति का पाठ जरुर करना चाहिए। तो आइए पढ़ते हैं माता सीता की स्तुति।
श्री जानकी स्तुति:
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।।1।।
दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।।2।।
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।
पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।3।।
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।4।।
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।5।।
नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।6।।
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।7।।
आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।8।।
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