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Shattila ekadashi 2019: मोक्ष प्राप्ति के लिए शुभ मुहूर्त पर विधि विधान से करें व्रत

षटतिला एकादशी 2019 इस बार 31 जनवरी को पड़ रही है। ये व्रत भगवान विष्णु प्रिय माना जाता है। पंडित दीपक पांडे से जानें इसका पूजन समय आैर विधान।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 04:27 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 11:05 AM (IST)
Shattila ekadashi 2019: मोक्ष प्राप्ति के लिए शुभ मुहूर्त पर विधि विधान से करें व्रत
Shattila ekadashi 2019: मोक्ष प्राप्ति के लिए शुभ मुहूर्त पर विधि विधान से करें व्रत

सुबह शाम कभी भी करें पूजन

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क्ष्रेत्र परंपरा के अनुसार कहीं कहीं प्रात:काल आैर कहीं सांयकाल में षटतिला एकादशी का पूजन होता है। अत: इस व्रत की पूजा का समय आप अपनी परंपरा के अनुसार ही चुनें। सनातन धर्म में माघ माह को नरक से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है। इसी माह में पड़ने वाली षटतिला एकादशी इस बात को बताती है कि धन आदि की तुलना में अन्नदान सबसे बड़ा दान है। इस वर्ष ये व्रत 31 जनवरी को गुरूवार के दिन है। मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने दाल्भ्य के नरक से मुक्ति पाने के उपाय के विषय में बताते हुए कहा- मनुष्य को माघ माह में अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ और चुगली आदि का त्याग करना चाहिए। माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत करना चाहिए। इस दिन तिल का विशेष महत्त्व होता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। तिल के कई प्रकार के उपयोग के कारण ही इस व्रत को षटतिला एकादशी कहते हैं।

कैसे करें पूजा

माघ माह में अपनी इंद्रियों को काबू में रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ आदि को भूल कर षटतिला एकादशी की व्रत विधि करनी चाहिए। पूरे वर्ष में पड़ने वाली अन्य 24 एकादशी से षटतिला एकादशी की पूजा थोड़ा भिन्न होती है। इसकी पूजा के लिए एक दिन पूर्व माघ माह कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाने चाहिए। इसके बाद दशमी के दिन मात्र एक समय भोजन करना चाहिए और भगवान का स्मरण करना चाहिए। इसके पश्चात अगले दिन षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन किया जाना चाहिए। उसके बाद श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधि विधान से पूजा कर अर्घ्य देना चाहिए।

सांयकाल एेसे करें पूजा

षटतिला एकादशी की रात को भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। साथ ही रात्रि को 108 बार "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते हुए उपलों को हवन में डालते हुए स्वाहा करना चाहिए। पूजा के बाद घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान करना चाहिए। यदि संभव हो तो काली गाय का दान भी करना उत्तम होता है। तिल से स्नान, उबटन, होम, तिल का दान, तिल को भोजन व पानी में मिलाकर ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत में तिल के महत्व को इस श्लोक से समझा जा सकता है- तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी। तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी॥ अर्थात इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान करने, उबटन लगाने और होम करने में करना चाहिए, साथ ही तिल मिश्रित जल पीना चाहिए, तिल दान करना चाहिए और तिल का भोजन करना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है।

तिल का महत्व

विभिन्न मान्यताआें के अनुसार  षटतिला एकादशी पर तिल से भरा हुआ बर्तन दान करना बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होंगी, उतने हजार बरसों तक दान करने वाला स्वर्ग में निवास करता है। इसकी कथा के अनुसार भी तिल और अन्नदान बहुत जरूरी है। यदि धन का दान ना कर सकें तो इस व्रत में सुपारी का दान भी किया जा सकता है। जो लोग एकादशी व्रत ना कर सकें उन्हें खान-पान आैर व्यवहार में सात्विक रहना चाहिए। इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा आदि खाना उचित नहीं समझा जाता आैर झूठ, ठगी आैर अन्य तामसी कार्यों का त्याग करने के लिए कहा जाता है। एकादशी के दिन चावल खाना भी वर्जित माना जाता है।

व्रत की कथा

इस व्रत की कथा इस प्रकार है। कहते हैं कि एक बार नारद मुनि तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए विष्णु लोक पहुंचे। जहां विष्णुजी को प्रणाम करके उन्होंने अपनी एक जिज्ञासा प्रकट कर उनसे षटतिला एकादशी की कथा को विस्तार से बताने के लिए कहा। तब भगवान विष्णु ने बताया कि प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह विष्णु जी की भक्त थी। वह उनके सभी व्रतों को नियमपूर्वक किया करती थी। एक बार उस ब्रह्मणी ने एक माह तक उपवास रखकर भगवान की प्रार्थना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वह कभी किसी भी देवता को अन्न दान नहीं करती थी। तब श्री हरि ने सोचा यदि यह मृत्यु के बाद उनके लोक आएगी तो भी अतृप्त ही रहेगी। इसलिए एक दिन वे स्वयं उसके घर भिक्षा लेने पहुंच गए। जब उन्होंने ब्राह्मणी से भिक्षा मांगी तो उसने एक मिट्टी का पिंड उठाकर उनके हाथों में रख दिया। वे पिंड लेकर अपने धाम लौट आए। समय बीतता गया आैर ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई। वह वैकुण्ठ लोक आर्इ जहां उसें एक कुटिया आैर उसके साथ एक आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया में आम का पेड़ देख वह घबरा गर्इ। तब वह ब्राह्मणी श्री विष्णु के पास आईं और बोली कि उसने तो सारे नियम धर्म का पालन किया फिर उसे एकांतवास जैसी ये सजा क्यों मिली। तब भगवान ने उससे कहा ये उसके कभी भी किसी को अन्नदान नहीं करने का दंड है। इस ब्राह्मणी ने क्षमा मांगते हुए दंड से मुक्ति का मार्ग पूछा। तब भगवान ने उसे उपाय बताते हुए कहा कि आप अपनी कुटिया का द्वार बंद कर लो आैर जब देव कन्याएं मिलने आएं तो तभी दरवाजा खोलना जब वे षटतिला एकादशी व्रत की विधि बता दें।' उसने ठीक वैसा ही किया। व्रत की कथा आैर विधान को जानकर ब्राह्मणी ने वैसा ही किया आैर जल्द ही उसकी कुटिया मरने के बाद भी धन-धान्य और अन्न से भर गई। इस तरह वह अपनी इंद्रियों पर हमेशा संयम भी रख सकी।


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