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Sawan 2020: भगवान शंकर की शिवलिंग स्वरुप में क्यों होती है पूजा? जानें क्या है इसका रहस्य

Sawan 2020 आपने मंदिरों में शिवलिंग की पूजा करते हुए शिव भक्तों को देखा होगा। आपने किसी अन्य देवता के लिंग स्वरूप की पूजा होते हुए नहीं देखा होगा।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Wed, 08 Jul 2020 12:30 PM (IST)Updated: Wed, 08 Jul 2020 12:30 PM (IST)
Sawan 2020: भगवान शंकर की शिवलिंग स्वरुप में क्यों होती है पूजा? जानें क्या है इसका रहस्य
Sawan 2020: भगवान शंकर की शिवलिंग स्वरुप में क्यों होती है पूजा? जानें क्या है इसका रहस्य

Sawan 2020: श्रावण मास में या फिर अन्य दिनों में आपने मंदिरों में शिवलिंग की पूजा करते हुए शिव भक्तों को देखा होगा। आपने किसी अन्य देवता के लिंग स्वरूप की पूजा होते हुए नहीं देखा होगा। शिवलिंग की पूजा और उसके रहस्य के बारे में शिव पुराण में विस्तार से बताया गया है। आज हम आपको शिवलिंग की पूजा, उसके महत्व और रहस्य के बारे में बताने जा रहे हैं।

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शिव पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति श्रवण, कीर्तन और मनन इन तीनों साधनों के अनुष्ठान में समर्थ न हो, वह भगवान शंकर के लिंग एवं मूर्ति की स्थापना करके नित्य उसकी पूजा करे, तो संसार सागर से पार हो सकता है।

साक्षात् ब्रह्म हैं शिव

शिवलिंग की पूजा करने को लेकर शिवपुराण में जो वर्णन है, वह इस प्रकार है- एक भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निकल यानी निराकार कहे गए हैं। रुपवान होने के कारण उनको सकल भी कहा गया है। इसलिए वे सकल और निकल हैं। शिव के निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ है। अर्थात् शिवलिंग शिव के निराकार स्वरुप का प्रतीक है। इस तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है ​अर्थात् शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरूप का प्रतीक होता है।

सकल और अकल रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा हैं। यही कारण है कि सब लोग लिंग और मूर्ति दोनों में ही सदा भगवान शिव की पूजा करते हैं। भगवान शिव से भिन्न जो अन्य देवता हैं, वे साक्षात् ब्रह्म नहीं हैं। इस वजह से उनके निराकार लिंग उपलब्ध नहीं होते हैं।

शिव आदि और अंत हैं

भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि वे आदि हैं और वे ही अंत हैं। वे अजन्मा हैं। उनसे ही सृष्टि का प्रारंभ और अंत होता है। वे अनंतकाल से इस ब्रह्मांड में निराकार या साक्षात् ब्रह्म के रूप में विद्यमान हैं। वे त्रिकालदर्शी हैं। उनको वर्तमान, भूत और भविष्य तीनों का ही ज्ञान है।


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