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Sankata Nashak Ganesh Mantra: बुधवार को गणेश जी की पूजा करते समय करें संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ, प्रभु हो जाते हैं प्रसन्न

Sankata Nashak Ganesh Mantra भगवान गणेश सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। गणपति बप्पा विघ्नहर्ता और विद्यादाता हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को धन-संपत्ति ये गौरीपुत्र हैं। ये व्यक्ति के जीवन की हर परेशानी को हल करते हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 07:00 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 07:31 AM (IST)
Sankata Nashak Ganesh Mantra: बुधवार को गणेश जी की पूजा करते समय करें संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ, प्रभु हो जाते हैं प्रसन्न
Sankata Nashak Ganesh Mantra: बुधवार को गणेश जी की पूजा करते समय करें संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ

Sankata Nashak Ganesh Mantra: भगवान गणेश, सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। गणपति बप्पा विघ्नहर्ता और विद्यादाता हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को धन-संपत्ति ये गौरीपुत्र हैं। ये व्यक्ति के जीवन की हर परेशानी को हल करते हैं। गणेश जी की उपासना करने से व्यक्ति के सभी संकट संकट मिट जाते हैं। उनका वाहन मूषक है और उसका नाम डिंक है। इनका नाम गणपति इसलिए पड़ा क्योंकि यह गणों के स्वामी हैं। इन्हें केतू का देवता कहा जाता है।

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हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, गणेश जी का नाम किसी भी शुभ कार्य से पहले लिया जाता है। गणपति बप्पा को प्रथम पूज्य कहा गया है। इनकी पूजा करने वाला प्रथम सम्प्रदाय गाणपत्य कहलाता है। वैसे तो गणेश जी के कई नाम हैं लेकिन उनमें से 12 नाम प्रमुख हैं। इनमें सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन शामिल हैं। गणेश जी की पूजा करते समय उनकी आरती, गणेश चालीसा, द्वादश नामों और मंत्रों का जाप किया जाता है। इसके साथ ही अगर गणपति बप्पा की पूजा करते समय संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

संकटनाशन गणेश स्तोत्र:

प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।

भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥

प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।

तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥

लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।

सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥

नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।

संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। ' 


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