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दुख आैर गरीबी दूर करने के लिए होता है रोहणी व्रत एेसे करें पूजा

वैसे तो रोहणी व्रत की पूजा सभी लोग करते हैं परंतु जैन धर्म के अनुयायियों के लिए इसका सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है। इस बार ये पर्व बुधवार 13 मार्च को मनाया जायेगा।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 13 Mar 2019 08:22 AM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 08:22 AM (IST)
दुख आैर गरीबी दूर करने के लिए होता है रोहणी व्रत एेसे करें पूजा

कब है रोहिणी व्रत 

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जैन समुदाय में रोहिणी व्रत का वि‍शेष महत्‍व है। 27 नक्षत्रों में शाम‍िल रोह‍िणी नक्षत्र के द‍िन यह व्रत क‍िया जाता है। इसल‍िए इसे रोह‍िणी व्रत के नाम से पुकारते हैं। रोहि‍णी नक्षत्र साल के हर माह में अपने चक्रानुसार आता है। इस माह में यह व्रत 13 तारीख बुधवार को क‍िया जाएगा। जैन धर्म के लोग इस द‍िन इस भगवान वासुपूज्य की व‍िध‍िवधान से पूजा अर्चना करते हैं। पत‍ि की लंबी उम्र की कामना के ल‍िए बड़ी संख्‍या में मह‍िलाएं इस व्रत को रखती हैं। साथ ही इस व्रत को करने से क्‍लेश दूर होकर घर में धन समृद्धि‍ आती हैं।

क्या होता है रोहिणी व्रत

‘रोहिणी’ जैन और हिन्दू कैलेंडर के 27 नक्षत्रों में से एक है। नियमों के अनुसार रोहिणी व्रत उस दिन रखा जाता है जब रोहिणी नक्षत्र, सूर्योदय के बाद प्रबल होता है। माना जाता है रोहिणी व्रत करने से सभी दुःख और गरीबी दूर हो जाती है। रोहिणी व्रत का पारण मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है जब रोहिणी नक्षत्र समाप्त होता है। ये व्रत साल भर में 12 बार आते है। इसको 3, 5 या 7 सालों के लिए किया जाता है, हांलाकि अधिकतर लोग यह व्रत केवल 5 साल या 5 महीने के लिए ही रखते हैं। इस व्रत की समाप्ति भी उद्यापन के साथ की जाती है। जो व्रत के आखिरी दिन की जाती है।

जानें पूजन व‍िधि‍

रोहिणी देवी से जुड़ा रोहि‍णी व्रत उदियातिथी यानी क‍ि सूर्योदय के बाद करना फलदायी होता है। प्रात: काल स्नान आदि करने के बाद भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। वासुपूज्‍य भगवान की पांचरत्‍न या फ‍िर सोने की प्रतिमा स्‍थापि‍त की जाती है। वासुपूज्‍य भगवान को दो वस्‍त्र, फूल, फल उनको अर्पित कि‍ए जाते हैं, फ‍िर नैवेध्य का भोग लगाया जाता है। इसके बाद भगवान से क्षमा याचना की जाती है और गरीबों को दान देने का भी महत्व होता है। व्रत का पारण अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष शुरू होने पर कि‍या जाता है। 

व्रत का उद्यापन

रोहि‍णी व्रत एक न‍िश्‍च‍ित समय तक क‍िया जाता है। 3, 5 या 7 वर्षों तक करने के बाद ही इसका उद्यापन भी कर सकते हैं। ऐसे में व्रत क‍ी समयावधि साधक द्वारा तय की जाती है। वह ज‍ितने द‍िन मानकर व्रत करता है उसके बाद उसे व्रत का उद्यापन करना होता है। 5 वर्ष और 5 माह तक व्रत‍ करने का समय शुभ माना जाता है। उद्यापन के द‍िन सबसे पहले भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। इसके बाद इस द‍िन बड़े स्‍तर पर दान और गरीबों को भोजन आद‍ि कराया जाता है। इससे भगवान वासुपूज्य प्रसन्‍न होते हैं। 


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