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Paush Purnima 2022: पौष पूर्णिमा पर करें चंद्र कवच का पाठ, दूर होंगी सभी मानसिक परेशानियां

Paush Purnima 2022 पौष पूर्णिमा के दिन चंद्र देव का पूजन किया जाता है। आज सोमवार की पूर्णिमा के दिन चंद्र कवच का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी कुण्डली से चंद्र दोष दूर होता है। आपकी सभी मानसिक परेशानियां दूर होगी।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 10:16 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 10:16 AM (IST)
Paush Purnima 2022: पौष पूर्णिमा पर करें चंद्र कवच का पाठ, दूर होंगी सभी मानसिक परेशानियां
Paush Purnima 2022: पौष पूर्णिमा पर करें चंद्र कवच का पाठ, दूर होंगी सभी मानसिक परेशानियां

Paush Purnima 2022: आज पौष माह की पूर्णिमा तिथि है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष स्थान होता है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है। इस दिन चंद्रमा के पूजन विशेष फल प्रदान करता है। साथ ही आज सोमवार होने के कारण ये और भी विशेष संयोग का निर्माण कर रहा है। चंद्रमा के ही नाम पर इस दिन को सोमवार कहा जाता है। सोमवार की पूर्णिमा तिथि को विशिष्ट माना जाता है। चंद्रमा को भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा को मन को नियंत्रित करने वाल माना गया है। इसे रचनात्मकता और भावनात्मकता का देवता माना जाता है। जिन लोगों की कुण्डली में चंद्रमा कमजोर स्थिती में होता है, उन लोगों को मानिसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों को आज, पौष पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के अत्यंत प्रभावशाली चंद्र कवच का पाठ करना चाहिए।

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श्री चंद्र कवच -

महर्षि गौतम रचित चंद्र कवच का पाठ सोमवार की पूर्णिमा के दिन करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी कुण्डली से चंद्र दोष दूर होता है। आपकी सभी मानसिक परेशानियां दूर होंगी। साथ ही रचनात्मकता में होने वाली वृद्धि आपको शिक्षा और कार्यक्षेत्र में सफलता प्रदान करती है।

श्रीचंद्रकवचस्तोत्रमंत्रस्य गौतम ऋषिः । अनुष्टुप् छंदः।

चंद्रो देवता । चन्द्रप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।

समं चतुर्भुजं वन्दे केयूरमुकुटोज्ज्वलम् ।

वासुदेवस्य नयनं शंकरस्य च भूषणम् ॥ १ ॥

एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम् ।

शशी पातु शिरोदेशं भालं पातु कलानिधिः ॥ २ ॥

चक्षुषी चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः ।

प्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबांधवः ॥ ३ ॥

पातु कण्ठं च मे सोमः स्कंधौ जैवा तृकस्तथा ।

करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः ॥ ४ ॥

हृदयं पातु मे चंद्रो नाभिं शंकरभूषणः ।

मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः ॥ ५ ॥

ऊरू तारापतिः पातु मृगांको जानुनी सदा ।

अब्धिजः पातु मे जंघे पातु पादौ विधुः सदा ॥ ६ ॥

सर्वाण्यन्यानि चांगानि पातु चन्द्रोSखिलं वपुः ।

एतद्धि कवचं दिव्यं भुक्ति मुक्ति प्रदायकम् ॥

यः पठेच्छरुणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ ७ ॥

॥ इति श्रीब्रह्मयामले चंद्रकवचं संपूर्णम् ॥

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 


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