Parivartini Ekadashi Mantra and Aarti: पूजा के दौरान श्रद्धा से करें एकादशी मंत्र का जाप
Parivartini Ekadashi Mantra and Aarti इस दिन पूजा करते समय व्यक्ति को परिवर्तिनी एकादशी मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही उनकी आरती भी करनी चाहिए।
Parivartini Ekadashi Mantra and Aarti: पुराणों के अनुसार, जो भी व्यक्ति परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करता है उसके पापों का नाश हो जाता है। व्यक्ति जीवन के संकटों से मुक्त हो जाता है। उसके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है। आज परिवर्तिनी एकादशी व्रत है। आज के दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, विष्णु जी ने राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी थी। जहां एक पग में इन्होंने धरती तो दूसरे में स्वर्ग मांग लिया था। तीसरा पग विष्णु जी के वामन रूप ने राजा बलि के सिर पर रख दिया था। इससे वह पाताल पहुंच गया था। उनकी विनम्रता देखकर विष्णु जी ने उसके साथ रहने की बात कही थी। फिर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम में उनकी मूर्ति की स्थापना की थी।
आज परिवर्तिनी एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु के भक्त यानी वैष्णव व्रत करते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन 4 महीनों के लिए सो जाते हैं। फिर देवउठनी एकादशी पर ही जागते हैं। परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु शयन में करवट बदलते हैं। इस दिन पूजा करते समय व्यक्ति को परिवर्तिनी एकादशी मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही उनकी आरती भी करनी चाहिए।
परिवर्तिनी एकादशी मंत्र:
ऊं नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
शांताकारं भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मीकान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा।
ओम नमो नारायणा।
भगवान जगदीश्वर की आरती:
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥