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Nirjala Ekadashi 2019: व्रत करने से होती है विष्णुलोक की प्राप्ति, जानें व्रत, पूजा, दान विधि एवं महत्व

Nirjala Ekadashi 2019 ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष यह 13 जून दिन गुरुवार को मनाई जा रही है।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Thu, 13 Jun 2019 10:04 AM (IST)Updated: Thu, 13 Jun 2019 10:04 AM (IST)
Nirjala Ekadashi 2019: व्रत करने से होती है विष्णुलोक की प्राप्ति, जानें व्रत, पूजा, दान विधि एवं महत्व
Nirjala Ekadashi 2019: व्रत करने से होती है विष्णुलोक की प्राप्ति, जानें व्रत, पूजा, दान विधि एवं महत्व

Nirjala Ekadashi 2019: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष यह 13 जून दिन गुरुवार को मनाई जा रही है। जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रहते समय अन्न, फल या जल का सेवन वर्जित है। निर्जला एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और समस्या से निवारण के लिए की जाती है। इस का व्रत करने से व्यक्ति को आयु, आरोग्य तथा विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। इस कारण से अन्य एकादशियों की तुलना में निर्जला एकादशी व्रत का महत्व अत्यधिक है।

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निर्जला व्रत के नियम और विधि

निर्जला व्रत करने वाला व्यक्ति अपवित्र अवस्था में आचमन के सिवा बिन्दुमात्र भी जल ग्रहण न करें। यदि किसी प्रकार भी जल को उपयोग में ले लिया जाय, तो उससे व्रत-भंग हो जाता है। व्रत करने वाले व्यक्ति को दृढ़तापूर्वक नियम पालन के साथ निर्जल उपवास करना चाहिए। द्वादशी को स्नान करके और सामर्थ्य के अनुसार सुवर्ण और जल भरा कलश दान देकर भोजन करें। ऐसा करने से सम्पूर्ण तीर्थों में जाकर स्नान, दानादि करने के समान फल मिलता है। इसे करने से विष्णुलोक की प्राप्त होती है।

व्रत विधि

एकादशी के दिन सुर्योदय से पूर्व स्नान करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें, हो सके तो पीला वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करें। पूजा में पीले फूल, पंचामृत और तुलसी पत्र जरुर रखें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप करें।

निर्जला एकादशी दान मंत्र

निर्जला एकादशी व्रत करने के उपरान्त द्वादशी के दिन जल से भरा हुआ घड़ा और शर्करा का दान देने का विधान है। दान देते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें—

देव देव हृषीकेश संसारार्णवतारक।

उदकुम्भप्रदानेन यास्यामिहरिमंदिरम्।।

व्यास जी के कथनानुसार, यह अवश्य सत्य है कि अधिमास सहित एक वर्ष की पच्चीस एकादशी न की जा सके तो केवल निर्जला एकादशी करने से ही पूरा फल प्राप्त हो जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत का इतिहास

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यासजी के मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया, ‘महाराज! मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता। दिनभर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है। अतः आप कोई ऐसा उपाय बता दें, जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाय।’

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तब व्यासजी ने कहा, ‘तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला एकादशी कर लो, इससे सालभर की एकादशी करने के समान फल मिल जाएगा।’ तब भीम ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गए। इसलिए यह एकादशी 'भीमसेनी एकादशी' के नाम से भी जानी जाती है।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र

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