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Mokshada Ekadashi 2019: मोक्षदा एकादशी को करें भगवान विष्णु की आराधना, इस दिन श्रीकृष्ण ने दिया गीता का उपदेश

Mokshada Ekadashi 2019 मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 11:21 AM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 11:21 AM (IST)
Mokshada Ekadashi 2019: मोक्षदा एकादशी को करें भगवान विष्णु की आराधना, इस दिन श्रीकृष्ण ने दिया गीता का उपदेश
Mokshada Ekadashi 2019: मोक्षदा एकादशी को करें भगवान विष्णु की आराधना, इस दिन श्रीकृष्ण ने दिया गीता का उपदेश

Mokshada Ekadashi 2019: मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मोक्षदा एकादशी मोह का क्षय करने वाली और मोक्ष देने वाली होती है। इस दिन भगवान विष्णु के विभिन्न स्वरुपों की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। मोक्षदा एकादशी इस वर्ष 8 दिसंबर दिन रविवार को पड़ रही है। इस दिन एकादशी व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, मोह-माया के बंधन से व्यक्ति मुक्त होता है।

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ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मध्याह्न में जौ और मूँग की रोटी तथा दाल का भोजन एक बार करें। फिर एकादशी को प्रातः स्नान आदि करके उपवास रखें। भगवान् का पूजन करें और रात्रि में जागरण करके द्वादशी को एकभुक्त पारण करें।

भगवान श्रीकृष्ण ने दिया गीता का उपदेश

मोक्षदा एकादशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस वजह से मोक्षदा एकादशी को गीता, श्रीकृष्ण, व्यास जी आदि की पूजा करके गीता जयन्ती का उत्सव मनाना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य मिश्र बताते हैं कि विश्व के किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के किसी भी ग्रन्थ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता है। केवल श्रीमद्भगवद्गीता की ही जयन्ती मनायी जाती है। अन्य ग्रन्थ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान् के श्रीमुख से हुआ है-

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।

सार्वभौम ग्रन्थ है गीता

गीता एक सार्वभौम ग्रन्थ है। यह किसी देश, काल, सम्प्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं है, अपितु सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए है। इसे स्वयं श्रीभगवान् ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है, इसलिए इस ग्रन्थ में कहीं भी 'श्रीकृष्ण उवाच' शब्द नहीं आया है बल्कि 'श्रीभगवानुवाच' का प्रयोग किया गया है।

जिस प्रकार गाय के दूध को बछड़े के बाद सभी धर्म, सम्प्रदाय के लोग पान करते हैं, उसी प्रकार यह गीता ग्रन्थ भी सबके लिए जीवनपाथेय स्वरूप है। सभी उपनिषदों का सार ही गोस्वरूप गीता माता हैं, इसे दुहने वाले गोपाल श्रीकृष्ण हैं, अर्जुनरूपी बछड़े के पीने से निकलने वाला महान् अमृत सदृश दूध ही गीतामृत है-

सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।

पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।

मनुष्य कल्याण के लिए गीता का उपदेश

भगवान श्रीकृष्ण ने किसी धर्म विशेष के लिए नहीं, अपितु मनुष्य मात्र के लिए उपदेश दिए हैं। गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है, जीवन जीने की शिक्षा देती है। केवल इस एक श्लोक के उदाहरण से ही इसे अच्छी प्रकार से समझा जा सकता है-

सुखदुःख समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।

ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।

गीता जयन्ती का महापर्व इसलिए भी मनाया जाता है कि इसके लाभ को मनुष्य मात्र तक पहुंचाने का सतत प्रयास जारी रहे।


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