जानें कब है पुत्रदा एकादशी, किस शुभ मुहूर्त में करें पूजा एवम् व्रत
2018 में 22 अगस्त बुधवार को पुत्रदा एकादशी का व्रत एवम् पूजन किया जायेगा। पंडित दीपक पांडे से जानें इसका शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, कथा आैर महत्व।
संतानदात्री मानी जाती है पुत्रदा एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। सिर्फ जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जानते हैं। मान्यता है इसकी पूजा आैर व्रत करके कथा सुनने मात्र से भक्तों को वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। संतान सुख की इच्छा रखने वालों को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। इस दिन की पूजा आैर भोजन में चावल का प्रयोग वर्जित होता है।
शुभ मुहूर्त
वैसे तो सभी एकादशी की तरह इस दिन भी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है आैर ये उन्हीं को समर्पित होती है, परंतु सावन मास में पड़ने के कारण स्वाभाविक है कि इस दिन इस दिन शिवजी का भी पूजन व अभिषेक जरूर करें। इस बार पुत्रदा एकादशी का मुहूर्त 22 अगस्त, 2018 दिन बुधवार को रहेगा। इस दिन आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर भगवान का पूजन करें आैर व्रत का संकल्प लें। पुत्रदा एकादशी पारणा मुहूर्त 23 अगस्त को प्रात: 05:54 से 08:30 तक रहेगा।
पुत्रदा एकादशी की कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण जी से पूछा कि श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है आैर इस व्रत को करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। इस पर श्री कृष्ण ने इस व्रत की कथा सुनाते हुए इसका महत्व बताया। द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन संतानहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। संतान सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को संतान प्राप्ति नहीं हुई। वृद्धावस्था आते देखकर राजा ने ने अपनी प्रजा से कहा कि उनके खजाने में अन्याय से कमाया हुआ धन नहीं है, देवताओं तथा ब्राह्मणों का छीना धन भी नहीं है, किसी विरासत पर अधिकार नहीं जमाया, आैर प्रजा का पालन अपनी संतान की तरह किया। साथ ही अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान समझा आैर सज्जनों की सदा पूजा की, फिर भी धर्म पूर्वक राज्य करने के बाद भी मैं संतानहीन रहा, इसका क्या कारण है? तब मंत्रियों आैर प्रजा ने कर्इ महान ऋषियों आैर साधु महात्माआें से इसका उत्तर पूछा आैर अंत में उन्हें लोमश मुनि मिले। उन्होंने बताया कि राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य थे आैर उन्होंने कर्इ बुरे कर्म किए थे। उस समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह दो दिन से भूखा-प्यासा एक जलाशय पर जल पीने गया। वहां पर एक तुरंत संतान को जनम देने वाली प्यासी गााय भी जल पी रही थी। राजा उसे हटा कर स्वयं जल पीने लगा। उस दिन एकादशी थी। इस दिन भूखा रहने से वह व्रत के पुण्य का भागी हुआ आैर राजा बना जबकि प्यासी गौ को जल पीने से रोकने के पाप के कारण संतानहीनता का दुख सह रहा है। ये कथा जान कर सबने ऋषि से प्रायश्चित की विधि पूछी। तब लोमश मुनि ने कहा श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, सब लोग व्रत और रात्रि को जागरण करें तो राजा का पाप नष्अ हो जाएगा आैर उसे संतान मिलेगी। ये कथा जानकर जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया। इसके पश्चात राजा को एक बड़ा तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ।