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र्इद-ए-मीलाद-उन-नबी 2018: जाने क्या है ये पर्व आैर कैसे मनाया जाता है

इस वर्ष 21 नवंबर 2018 को मीलाद उन नबी मनाया जायेगा जो हजरत मुहम्मद को समर्पित है। जाने इससे जुड़ी कुछ बातें।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 12:30 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 09:55 AM (IST)
र्इद-ए-मीलाद-उन-नबी 2018: जाने क्या है ये पर्व आैर कैसे मनाया जाता है
र्इद-ए-मीलाद-उन-नबी 2018: जाने क्या है ये पर्व आैर कैसे मनाया जाता है

क्या है इसका अर्थ 

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इस साल 21 नवंबर 2018 बुधवार को देशभर में र्इद-ए-मीलाद-उन-नबी मनाया जाएगा जो कि इस्लाम धर्म के मानने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। इस शब्द की उत्पत्ति मौलिद से हुर्इ है जिसका अरबी में अर्थ "जन्म" है। इस तरह अरबी भाषा में 'मौलिद-उन-नबी' का मतलब है हज़रत मुहम्मद का जन्मदिन। यह त्यौहार हर साल 12 रबी अल-अव्वल को मनाया जाता है मीलाद उन नबी इस्लाम के अनुयायियों का सबसे बड़ा जश्न माना जाता है। 

कहीं खुशी, कहीं मातम 

हांलाकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह दिन मुस्लिम समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण है, इसके बाद भी इस दिन में अजीब सा ट्विस्ट है। दरसल  ईद-ए मिलाद-उन-नबी को लेकर दो भिन्न मान्यताएं प्रचलित हैं। पैगंंबर हजरत मोहम्मद और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को समर्पित यह दिन कई स्थानों पर पैगंबर के जन्मदिन के उत्सव के रूप में और कुछ जगहों पर शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस्लाम के दो अनुयायी शिया आैर सुन्नी इसे अपने अपने तरीके से मनाते हैं। 

सुन्नीयों का जश्न

कुरान में कहा गया है कि हजरत मोहम्मद का जन्म इस्लाम कैलेंडर के अनुसार, रबि-उल-अव्वल माह के 12वें दिन 570 ई. को मक्का में हुआ था और उसी ईद-ए-मिलाद को मौलिद मावलिद कहते हैं, यानि पैगंबर का जन्म दिवस। इसीलिए सुन्नी समुदाय के लोग इस दिन का जश्न बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इनका विश्वास है कि इस दिन पैगंबर की शिक्षा को सुनने से जन्नत के द्वार खुलते हैं, इसलिए इस दिन सुबह से लेकर रात तक धर्म सभायें आयोजित की जाती हैं। 

शिया करते हैं मातम

दूसरी आेर सुन्नी समुदाय इस दिन को अलग तरह से मनाता है। इस समुदाय का मानना है कि ये हजरत साहब की मौत का दिन है इसलिए वो पूरे महीने शोक मनाते हैं और इस दिन वे मातम करते हैं। 

आखिरी संदेशवाहक 

कहा जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद को अल्लाह ने फरिश्ते जिब्रईल जरिए कुरान का संदेश दिया था आैर वे अल्लाह के आखिरी संदेशवाहक थे। इसी के साथ उन्हें महानतम नबी भी कहते हैं।  इसीलिए मुस्लमान उन्हें बेहद सम्मानजनक भाव से याद करते हैं। र्इद मीलाद -उन-नबी के मौके पर पैगंबर मोहम्मद के प्रतीक उनके पैरों के निशान की प्रार्थना की जाती है। इस अवसर पर उनकी याद में जुलूस निकाले जाते हैं और दिन रात प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं। इस दिन कुरान की तिलावत करने के साथ कर्इ लोग मक्का-मदीना और विभिन्न दरगाहों पर जाकर इबादत करते हैं। 


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