गुरू पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण का साया, जाने क्या होगा प्रभाव आैर इस दिन का महत्व
शुक्रवार 27 जुलार्इ को चंद्र के दिन ही दिन गुरु पूर्णिमा भी है इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस पर्व के महत्व आैर ग्रहण के इस पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जानें पंडित दीपक पांडे से।
क्या है गुरू पूर्णिमा आैर उसका महत्व
आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु की पूजा का विधान होता है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है आैर इस दिन से आगामी चार महीने तक ब्राहम्ण आैर साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान बांटते हैं। इसी दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का भी जन्म हुआ था। व्यास जी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इसलिए उनको वेद व्यास के नाम से भी बुलाया जाता है। वे आदिगुरु कहलाते हैं आैर उन्हीं के सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। इसी प्रकार सिख धर्म में भी इस पर्व का अत्याधिक महत्व है क्योंकि सिख धर्म में उनके दस गुरुओं का बेहद महत्व रहा है।
कब आैर कैसे होगी पूजा
गुरु पूर्णिमा की तिथि 27 जुलाई 2018 को है। इसी दिन रात्रि में इस सदी का सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण लग रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार चंद्र ग्रहण भले ही 27 जुलाई की रात में लग रहा है, लेकिन इसका सूतक काल दोपहर 2.55 पर प्रारंभ हो जायेगा। इसका अर्थ है कि गुरु पूजन इस समय से पहले ही करना होगा। इसके साथ ही 27 जुलाई को सुबह 10:30 से दोपहर 12:00 बजे तक राहुकाल है। राहुकाल के दौरान भी गुरु पूजन नहीं किया जा सकता। ऐसे में गुरु की पूजा सुबह 5 बजे से लेकर सुबह 10:29 बजे तक या दोपहर 12:01 मिनट से 2:54 बजे तक ही कर सकते हैं। इस दिन पूजा करने के लिए सबसे पहले
सुुुुबह उठकर घर की साफ सफाई कर लें और फिर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद घर के मंदिर में पटरे पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12 रेखाआें से व्यास पीठ बनाएं। उसके बाद दोनों हाथ जोड़कर इस मंत्र का जाप करें ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’। अब दसों दिशाओं में अक्षत यानि चावल छिंड़कें आैर व्यासजी, ब्रह्माजी, आैर अपने आराध्य गुरु के नाम से पूजा का आवाहन करें। अंत में गुरु अथवा उनके चित्र को प्रणाम करें।
सत्य नारायण की कथा में भी रखें कुछ बातों का ध्यान
पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग भगवान सत्य नारायण का व्रत आैर पूजन करते हैं। इस बार भी आषाढ़ी पूर्णिमा को भक्त इस कथा आैर व्रत को करेंगे। अत: इस दिन पूजन से पूर्व उन्हें कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। एक तो सूतक काल के पूर्व ही कथा करना अनिवार्य है। सामान्य रूप से पूर्णिमा की कथा प्रदोष काल में करना सर्वोत्म माना जाता है, परंतु इस बार एेसा करना उचित नहीं होगा क्योंकि उस समय ग्रहण का सूतक काल प्रारंभ हो चुका होगा। इसलिए कथा करने वाले या तो प्रात:काल ही पूजा सम्पन्न कर लें या फिर निम्नलिखित विधान से कथा करें क्योंकि ग्रहण की अवधि में र्इश्वर का ध्यान करना सामान्य प्रक्रिया है।
इस तस्वीर में दिए गए श्लोक के अनुसार सूतक काल में सत्य नारायण की कथा करने वाले व्यक्ति को पूजन के ठीक पूर्व स्नान करना चाहिए आैर फिर कथा पर बैठना चाहिए। साथ ही इस दिन भगवान के भोग में पके हुए अन्न का प्रयोग नहीं करना चाहिए।