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धन आैर वैभव के साथ दांपत्य सुख भी मिलता है देवगुरू बृहस्पति के इन मंत्रों के जाप से

गुरुवार को देवगुरु बृहस्‍पति की पूजा करने का विधान है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इस दिन पूजा करने से सुखद दाम्पत्य जीवन व सौभाग्य प्राप्‍त होता है।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 04 Jul 2018 04:57 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jan 2018 06:30 AM (IST)
धन आैर वैभव के साथ दांपत्य सुख भी मिलता है देवगुरू बृहस्पति के इन मंत्रों के जाप से
धन आैर वैभव के साथ दांपत्य सुख भी मिलता है देवगुरू बृहस्पति के इन मंत्रों के जाप से

चमत्‍कारी है ये मंत्र 

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देवगुरु बृहस्पति के तंत्रोक्‍त मंत्र ना सिर्फ धन और वैभव की दृष्टि से चमत्कारी है बल्कि तुरंत असर करने वाले हैं। जरूरत है इन्हें एक साथ निरंतर जपने की। इन चमत्कारी पांचों मंत्रों की जप संख्या 19 हजार है। आप किसी भी एक गुरु मंत्र का गुरुवार को जाप कर सकते है । सूर्य के बाद सबसे विशाल ग्रह भी बृहस्पति ही माना जाता है। देवपूज्य बृहस्पति या गुरु दार्शनिक, आध्यात्मिक ज्ञान को निर्देशित करने वाला उत्तम ग्रह माना गया है। देवगुरु बृहस्पति के ‍तंत्रोक्त मंत्र ना सिर्फ धन और वैभव की दृष्टि से चमत्कारी है बल्कि हर तरह से महत्‍वपूर्ण है। बृहस्पतिवार को देवगुरु बृहस्पति के विशेष मंत्र ध्यान के शुभ प्रभाव से ज्ञान, बुद्धि, सुख-सौभाग्य, वैभव व मनचाही कामयाबी पाना आसान हो जाता है। यदि आप गुरु के अनिष्टकारी प्रभाव से आप परेशान हैं तो बृहस्पति का मूल मंत्र और शांति पाठ आपके लिए कल्याणकारी हो सकता है। इसके लिए इस मंत्र का जाप करें। ऊं बृं बृहस्पतये नम:

ये है भी हैं कल्‍याण कारी मंत्र

ऊं अस्य बृहस्पति नम: (शिरसि), ऊं  अनुष्टुप छन्दसे नम: (मुखे), ऊं  सुराचार्यो देवतायै नम: (हृदि), ऊं बृं बीजाय नम: (गुहये), ऊं  शक्तये नम: (पादयो:), ऊं  विनियोगाय नम: (सर्वांगे)

करन्यास मंत्र

ऊं  ब्रां- अंगुष्ठाभ्यां नम:, ऊं  ब्रीं- तर्जनीभ्यां नम:, ऊं  ब्रूं- मध्यमाभ्यां नम:, ऊं  ब्रैं- अनामिकाभ्यां नम:, ऊं ब्रौं- कनिष्ठिकाभ्यां नम:, ऊं ब्र:- करतल कर पृष्ठाभ्यां नम:। करन्यास के बाद नीचे लिखे मंत्रों का उच्चारण करते हुए हृदयादिन्यास करना चाहिए।

ऊं  ब्रां- हृदयाय नम:, ऊं  ब्रीं- शिरसे स्वाहा, ऊं  ब्रूं- शिखायैवषट्, ऊं  ब्रैं कवचाय् हुम, ऊं  ब्रौं- नेत्रत्रयाय वौषट्, ऊं  ब्र:- अस्त्राय फट्।

रत्नाष्टापद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरनतं करादासीनं, विपणौकरं निदधतं रत्नदिराशौ परम्।

पीतालेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकारं सम्भूषितम्, विद्यासागर पारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम्। 


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