Diwali 2018: लक्ष्मी—गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जानें क्या है इस दीपावली पूजन की विधि आैर शुभ मुहूर्त।
अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व दीपावली इस वर्ष 7 नवंबर को है। लंका पर विजय के बाद रामचंद्र जी माता सीता, भाई लक्ष्मण और वानर सेना के कुछ सदस्यों के साथ 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में पूरे राज्य में दीपोत्सव मनाया गया था। इसके बाद से हर वर्ष दीपावली मनाई जाती है। इस दिन धन—संपदा और वैभव की देवी लक्ष्मी और प्रथम पूज्य श्रीगणेश की पूजा करते हैं।
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ऐसा करने से घर में निवास करती हैं लक्ष्मी
ब्रह्मपुराण में लिखा है— 'कार्तिक की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय माता लक्ष्मी सद्गृहस्थों के घरों में जहां-तहां विचरण करती हैं, इसलिए अपने घरों को स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली अथवा दीपमालिका बनाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उनमें स्थायी रूप से निवास करती हैं।
कार्तिक अमावस्या को माता लक्ष्मी भगवान गणेश का पूजन करने का विधान है। गणेश की प्रतिमा का भी अलग—अलग महत्व है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए वामावर्त सूड़ वाली और लौकिक भौतिक सुख की कामना हेतु दक्षिणावर्त सूड़ वाली भगवान गणेश की प्रतिमा घर में स्थापित करनी चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन स्थिर लग्न में करना चाहिए। स्थिर लग्न में पूजन करने से मां लक्ष्मी का आपके घर में वास होता है। गणेश जी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी को स्थापित करना चाहिए।
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पूजा का शुभ मुहूर्त
कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि बुधवार 7 नवम्बर 2018 को दिवाली मनाई जाएगी। अमावस्या तिथि 6 नवम्बर मंगलवार को ही रात में 10 बजकर 07 मिनट से लग रही है, जो 7 नवम्बर 2018 दिन बुधवार को रात में 09 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। इस प्रकार उदया तिथि में अमावस्या का मान सूर्योदय से ही मिल रहा है। साथ ही, प्रदोष काल का भी बहुत ही उत्तम योग है।
प्रदोष काल
प्रदोष काल शाम 05:19 से 07:53 बजे तक रहेगा। पूजन एवं खाता पूजन हेतु शुभ मुहूर्त्त स्थिर लग्न वृश्चिक दिन 07:16 बजे से लेकर 09:33 तक, कुम्भ स्थिर लग्न दिन 1:26 से 2:57 तक, वृष स्थिर लग्न शाम 6:02 से 7:58 तक विद्यमान रहेगा।
पूजन विधि
दीपावली के दिन प्रातः स्नान और नित्यकर्म से निवृत्त होकर दिनभर का व्रत रखें। शाम के समय दोबारा स्नान करके किसी भी शुद्ध, सुन्दर, सुशोभित और शान्तिपूर्ण स्थान में वेदी बनाकर या चौकी आदि पर अक्षत आदि से अष्टदल लिखें और उस पर लक्ष्मी का स्थापन करके 'लक्ष्म्यै नम:' 'इन्द्राय नम:' और 'कुबेराय नम:' इन नामों से पूजन करें।