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पितरों की पूर्ण संतुष्टि के लिए श्राद्घ में समय का होता है महत्व

इस साल पितृपक्ष 24 सितंबर 2018 से प्रारंभ हो कर 8 अक्टूबर 2018 तक चलेगा। पंडित दीपक पांडे से जाने इस दौरान श्राद्घ करने के सर्वोत्म समय के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 03:10 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 08:35 AM (IST)
पितरों की पूर्ण संतुष्टि के लिए श्राद्घ में समय का होता है महत्व
पितरों की पूर्ण संतुष्टि के लिए श्राद्घ में समय का होता है महत्व

समय का है विशेष महत्व 

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पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाय वही श्राद्ध है। इसीलिए इस काल को श्राद्घ काल या महालय भी कहा जाता है। श्राद्ध कर्म जिसमें पिंड दान आैर तर्पण आदि सम्मिलित होते हैं। श्राद्ध पूजा में समय का अत्याधिक महत्व होता है। एेसा कहा जाता है कि शास्त्रों में ये बाद बहुत स्पष्ट रूप से बतार्इ गर्इ है कि श्राद्घ तिथि पर किस समय पर किसका श्राद्घ किया जाये ताकि पितरों को पूर्ण संतुष्टि प्राप्त हो सके। इस बारे में मान्यता है कि कुतप वेला श्राद्घ कर्म के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। ये लगभग दोपहर का समय होता है जो दिन का आठवां मुहूर्त माना जाता है। ये अवधि 11 बज कर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट के बीच रहती है। अत सभी को इसी दौरान श्राद्घ कार्य पूरे करने का प्रयास करना चाहिए। 

हरेक के लिए है अलग समय 

इतना ही नहीं मातृ आैर पितृ श्राद्घ के साथ साथ अन्य श्राद्घों के अनुसार भी सही समय का जिक्र शास्त्रों में किया गया है। जैसे मातृ श्राद्घ को पूर्वाह्न में करना चाहिए। इसे अन्वष्टका श्राद्घ कहते हैं। पितृ श्राद्घ अपराह्न में किया जाता है। इसी प्रकार एकोदिष्ट श्राद्घ मध्याह्न में होता है। जबकि आभ्युदायिक श्राद्घ प्रात:काल में किया जाता है। एकोदिष्ट श्राद्घ के लिए मध्याह्न व्यापिनी तिथि निश्चित मानी जाती है। उसमें घट बढ़ के बारे में नहीं सोचना चाहिये। 

हर कार्य का समय है निश्चित 

श्राद्घ के दौरान उस तिथि पर व्रत रखना चाहिए आैर ये कार्य मृत्यृ की तात्कालिक तिथि पर ही किया जाना चाहिए। वैसे ही जैसे देव कार्य पूर्वाह्न व्यापिनी तिथि पर करना सुनिश्चित माने जाते हैं। वहीं पितृ कार्यों के लिए अपराह्न व्यापनि समयाविधि को सुरक्षित किया गया है। अत: पितरों को प्रसन्न आैर संतुष्ट रखना है तो तिथि आैर समय का विशेष ध्यान रखें। यदि तिथि ज्ञात ना हो तो अंतिम महालय यानि आश्विन अमावस्या का दिन श्राद्ध सर्वोत्म होता है आैर इसे सर्वपितृ श्राद्ध योग कहा जाता है। इसी तरह स्त्रियों के लिए नवमी तिथि विशेष मानी गई है, जिसे मातृ नवमी या मातामही श्राद्घ भी कहते हैं। इस बार तारीखें के अनुसार श्राद्घों का क्रम इस प्रकार रहेगा। 

श्राद्घ का तिथि वार कैलेंडर 

24 सितंबर 2018 को पूर्णिमा का श्राद्ध

25 सितंबर 2018 को प्रतिपदा का श्राद्ध

26 सितंबर 2018 को द्वितीय का श्राद्ध

27 सितंबर 2018 को तृतिया का श्राद्ध

28 सितंबर 2018 को चतुर्थी का श्राद्ध

29 सितंबर 2018 को पंचमी का श्राद्ध

30 सितंबर 2018 को षष्ठी का श्राद्ध

1 अक्टूबर 2018 को सप्तमी का श्राद्ध

2 अक्टूबर 2018 को अष्टमी का श्राद्ध

3 अक्टूबर 2018 को नवमी का श्राद्ध

4 अक्टूबर 2018 को दशमी का श्राद्ध

5 अक्टूबर 2018 को एकादशी का श्राद्ध

6 अक्टूबर 2018 को द्वादशी का श्राद्ध

7 अक्टूबर 2018 को त्रयोदशी, आैर चतुर्दशी का श्राद्ध

8 अक्टूबर 2018 को सर्वपितृ अमावस्या। 


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