जाने कब है मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत 2018 आैर क्या इसका महत्व
मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत होता है। भगवान नारायण की पूजा की जाती है। स्वयं श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि वे महीनो में पवित्र मार्गशीर्ष हैं इसीलिए मार्गशीर्ष या अगहन को सर्वश्रेष्ठ माह मानते हैं।
मार्गशीर्ष माह का महत्व
पंडित दीपक पांडे ने बताया है कि इस वर्ष 22 दिसंबर शनिवार को मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत किया जायेगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की तरह मार्गशीर्ष पूर्णिमा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन कर्इ स्थानों पर श्रद्घालु आस्था की डुबकी पवित्र नदियों, सरोवर में लगाते है। कहते हैं मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन स्नान-दान से अमोघ फल प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, इस माह प्रतिदिन स्नान-दान पूजा पाठ करने से पापों का नाश होता है आैर व्रत करने वाले की सारी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। सनातन धर्म में मानते हैं कि सतयुग का प्रारम्भ देवताओ ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही किया था। इस कारण भी यह धर्म के लिए अति पावन महीना माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन दान करने से बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है। अतः मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा या बतीसी पूनम भी कहा जाता है।
पूजा विधान
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को सबसे पहले नित्य पूजा से निवृत्त होकर नियम पूर्वक पवित्र होकर स्नान करें और सफेद कपड़े पहनें। अब आसन ग्रहण करने के बाद व्रत रखने वाला व्यक्ति ओम नमो नारायणा कहकर भगवान का आवाहन करे। तब गंध, पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें। तत्पश्चात भगवान के सामने हवन करने के लिए अग्नि प्रज्जवलित करें और उसमें तेल, घी, बूरा आदि की आहुति दें। हवन की समाप्ति के बाद फिर भगवान का पूजन करें और अपना व्रत उनको अर्पण करें। इसके लिए श्री नारायण का ध्यान करते हुए कहें कि देव पुंडरीकाक्ष मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूंगा आप मुझे अपनी शरण दें। इस प्रकार भगवान को व्रत समर्पित करके सायं काल चंद्रमा निकलने पर दोनों घुटने पृथ्वी पर टेक कर सफेद पुष्प, अक्षत, चंदन, जल से अर्ध्य दें। चंद्रमा का पूजन करते हुए उनकी ओर मुख करके हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि हे रोहिणी पति मेरा अर्ध्य आप स्वीकार करें, हे सोलह कलाआें से सुशोभित भगवान आपको नमस्कार है, आप लक्ष्मी के भाई हैं आपको नमस्कार हैं। इस दिन रात्रि को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही शयन करना चाहिए। दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान देकर विदा करें।