सूर्योपासना के लिए विशेष है करवीर व्रत, ऐसे करें पूजा और इन बातों का रखें ध्यान
14 जून 2018 को बृहस्पतिवार के दिन पड़ रहा है सूर्य को समर्पित करवीर व्रत। इस दिन कनेर के वृक्ष के साथ सूर्य की पूजा की जाती है।
क्या है करवीर व्रत
सूर्य को समर्पित करवीर व्रत अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है। इस व्रत के बारे में प्रसिद्ध है कि इसे सावित्री, सरस्वती, सत्यभामा और दमयंती जैसी महान स्त्रियों ने भी किया था। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किया जाता है। कहते हैं कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के संकट से मुक्ति मिलती है और मनुष्य को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा की जाती है।
ऐसे करें सूर्य पूजा
इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य देव का स्मरण करें। इसके बाद सूर्यनारायण को तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करें। अब सूर्य के मंत्रों का जाप श्रद्धापूर्वक करें। विष्य पुराण के अनुसार इस दिन सूर्य भगवान को यदि एक आक का फूल अर्पण कर दिया जाए तो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने का फल मिलता है। भगवान आदित्य को चढ़ाने योग्य कुछ फूलों का उल्लेख वीर मित्रोदय, पूजा प्रकाश में भी है। करवीर व्रत में सूर्य को रात्रि में कदम्ब के फूल और मुकुर को अर्पण करना चाहिए तथा दिन में शेष अन्य सभी फूल चढ़ाए जा सकते हैं। बेला का फूल दिन और रात दोनों समय चढ़ाया जा सकता है। कुछ फूल सूर्य आराधना में निषिद्ध हैं। ये हैं गुंजा, धतूरा, अपराजिता, भटकटैया और तगर इत्यादि। इनका प्रयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए। इस व्रत में एक समय सूर्य प्रकाश रहते ही भोजन करें। इस दिन नमकीन और तेल युक्त भोजन ना करें। सूर्य अस्त होने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
कनेर के वृक्ष की पूजा
इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा करने का विधान है। इस पूजा को भी नियम पूर्वक करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले वृक्ष के पास सफाई कर जल से शुद्ध करें। अब कनेर के वृक्ष के तने पर लाल मौलि बांधें और उसको जल अर्पित करते हुए लाल वस्त्र उढ़ायें। अब गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करें। किसी पात्र में सप्तधान्य यानि सात प्रकार के अनाज और फल आदि रखकर वृक्ष को अर्पित करें। पूजन के बाद दोनों हाथ जोड़कर इस मंत्र से वृक्ष की प्रार्थना करे- ‘आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न्मृतं च्। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥’ इसके बाद वृक्ष की प्रदक्षिणा करके प्रणाम करें।