Move to Jagran APP

आ रहा है सावन 2018 जिसमें होती है शिव की प्रिय कांवड़ यात्रा जानें इस यात्रा से जुड़ी खास बातें

सावन मास में लाखों कांवडिये सुदूर स्थानों से गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इसी को कांवड़ यात्रा बोला जाता है। जानें इससे जुड़े कुछ तथ्य

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 10:13 AM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2018 04:57 PM (IST)
आ रहा है सावन 2018 जिसमें होती है शिव की प्रिय कांवड़ यात्रा जानें इस यात्रा से जुड़ी खास बातें
आ रहा है सावन 2018 जिसमें होती है शिव की प्रिय कांवड़ यात्रा जानें इस यात्रा से जुड़ी खास बातें

परशुराम से जुड़ी है कांवड़ की कथा 

prime article banner

कहते हैं कि भगवान परशुराम ने शिव के नियमित पूजन के लिए पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना करके कांवड़ में गंगाजल से पूजन कर कांवड़ परंपरा की शुरुआत की थी। आज वही परंपरा कांवड़ यात्रा का आधार मानी जाती है, जो देशभर में प्रचलित है। वैसे कर्इ आैर कथायें भी कांवड़ यात्रा से जुड़ी हैं, जैसे एक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने से शिव जी की देह जलने लगी तो उसे शांत करने के लिए देवताआें ने विभिन्न पवित्र नदियों आैर सरोवरों के जल से उन्हें स्नान कराया। तभी से सावन माह में कांवड़ में सुदूर स्थानों से पवित्र जल लाकर शिव का जलाभिषेक करने की परंपरा प्रारंभ हुर्इ। एक अन्य कथा में समुद्र मंथन के बाद शिव जी को ताप से शांति दिलाने के लिए रावण द्वारा कांवड़ में जल ला कर शिव जी को शांति प्रदान करने की बात कही गर्इ है, परंतु सबसे ज्यादा प्रचलित कथा परशुराम जी की ही है।  

प्रतिवर्ष सावन मास की चतुर्दशी के दिन पवित्र नदियों के जल से शिव मंदिरों में शंकर जी का अभिषेक किया जाता है। वैसे तो ये ये धार्मिक परंपरा है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। मान्यता है कि कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए हैं। 

पुत्र प्राप्ति का अनुष्ठान 

पौराणिक मान्यताआें के अनुसार सावन में कांवड़ के माध्यम से जल अर्पण करने से अत्याधिक पुण्य तो प्राप्त होता ही है, साथ ही एेसा विश्वास है कि कांवड़ यात्रा के बाद जल चढ़ाने पर पुत्र की प्राप्ति होती। अलग अलग जगहों की अलग मान्यताएं रही हैं, ऐसा मानना है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर “पुरा महादेव”, में जो उत्तर प्रदेश प्रांत के बागपत के पास मौजूद है, गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाकर उस पुरातन शिवलिंग पर जलाभिषेक, किया था। आज भी उसी परंपरा का अनुपालन करते हुए श्रावण मास में गढ़मुक्तेश्वर, जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है, से जल लाकर लाखों लोग श्रावण मास में भगवान शिव पर चढ़ाकर अपनी कामनाओं की पूर्ति का वरदान प्राप्त करना चाहते हैं। 

सम्पूर्ण भारत में है प्रचलन 

उत्तर भारत में भी गंगा के किनारे के क्षेत्रों में कांवड़ का बहुत महत्व है। राजस्थान के मारवाड़ी समाज में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के तीर्थ पुरोहित जो जल लाते हैं और प्रसाद के साथ जल देते हैं, उन्हें कांवड़िये कहते हैं। ये लोग गोमुख से जल भरकर रामेश्वरम में ले जाकर भगवान शिव का अभिषेक करते थे। आगरा जिले के पास बटेश्वर में, जिन्हें ब्रह्मलालजी महाराज के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिवजी का शिवलिंग रूप के साथ-साथ पार्वती, गणेश का मूर्ति रूप भी है। सावन मास में कासगंज से गंगाजी का जल भरकर लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव का कांवड़ यात्रा के माध्यम से अभिषेक करते हैं। 

एक अनोखी कहानी 

कासगंज से एक विचित्र कथा भी जुड़ी हुर्इ है। यहां पर 101 मंदिर स्थापित हैं। इसके बारे में एक प्राचीन कथा है कि 2 मित्र राजाओं ने संकल्प किया कि हमारे पुत्र अथवा कन्या होने पर दोनों का विवाह करेंगे। परंतु दोनों के यहां पुत्री संतानें हुईं। एक राजा ने ये बात सबसे छिपा ली और विदाई का समय आने पर उस कन्या ने, जिसके पिता ने उसकी बात छुपाई थी, अपने मन में संकल्प किया कि वह यह विवाह नहीं करेगी और अपने प्राण त्याग देगी। उसने यमुना नदी में छलांग लगा दी। जल के बीच में उसे भगवान शिव के दर्शन हुए और उसकी समर्पण की भावना को देखकर भगवान ने उसे वरदान मांगने को कहा। तब उसने कहा कि मुझे कन्या से लड़का बना दीजिए तो मेरे पिता की इज्जत बच जाएगी। इसके लिए भगवान ने उसे निर्देश दिया कि तुम इस नदी के किनारे मंदिर का निर्माण करना। यह मंदिर उसी समय से मौजूद है। यहां पर कांवड़ यात्रा के बाद जल चढ़ाने पर अथवा मान्यता करके जल चढ़ाने पर पुत्र संतान की प्राप्ति होती है। इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहां एक-दो किलो से लेकर 500-700 किलोग्राम तक के घंटे टंगे हुए हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.
OK